Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
जो जीव-देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय-देश यावत् अनिन्द्रिय- देश हैं ।
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जो जीव- प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय-प्रदेश, द्वीन्द्रिय- प्रदेश यावत् अनिन्द्रिय- प्रदेश हैं । जो अजीव हैं वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- रूपि अजीव, अरूपि - अजीव । जो रूपि- अजीव हैं, वे चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- स्कंध, स्कंध - देश, स्कन्ध- प्रदेश, परमाणु- पुद्गल ।
जो अरूपि-अजीव हैं, वे सात प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे
१. धर्मास्तिकाय नहीं हैं, धर्मास्तिकाय का देश है, २. धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं ३. अधर्मास्तिकाय नहीं हैं, अधर्मास्तिकाय का देश है ४. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं ५. आकाशास्तिकाय नहीं है, आकाशास्तिकाय का देश है ६. आकाशास्तिकाय के प्रदेश हैं ७. अध्वा समय है,
श. १० : उ. १ : सू. ५-८
६. भंते! आग्नेयी दिशा क्या जीव है ? जीव- देश है ? जीव- प्रदेश है ? पृच्छा ।
गौतम! जीव नहीं है, जीव-देश भी है, जीव- प्रदेश भी है, अजीव भी है, अजीव - देश भी है, अजीव - प्रदेश भी है ।
जो जीव-देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय के देश हैं; अथवा एकेन्द्रिय के देश हैं और द्वीन्द्रिय का देश है; अथवा एकेन्द्रिय के देश हैं और द्वीन्द्रिय के देश हैं अथवा एकेन्द्रिय के देश हैं और त्रीन्द्रिय का देश है। इसी प्रकार तीन विकल्प वक्तव्य हैं। इसी प्रकार यावत् अनिन्द्रिय के तीन भंग वक्तव्य हैं। जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं; अथवा एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं और द्वीन्द्रिय का प्रदेश है; अथवा एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं और द्वीन्द्रियों के प्रदेश हैं । इसी प्रकार प्रथम - विकल्प - विरहित यावत् अनिन्द्रिय की वक्तव्यता ।
जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे - रूपि - अजीव, अरूपि - अजीव ।
जो रूपि-अजीव हैं, वे चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-स्कन्ध यावत् परमाणु- पुद्गल । जो अरूप - अजीव हैं - वे सात प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- नोधर्मास्तिकाय - धर्मास्तिकाय नहीं है; धर्मास्तिकाय का देश है; धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय की वक्तव्यता यावत् आकाशास्तिकाय के प्रदेश । अध्वा समय है ।
७. भंते! क्या याम्या दिशा जीव है ?
जैसे ऐन्द्री वैसे ही याम्या की निरवशेष वक्तव्यता । नैर्ऋती आग्नेयी की भांति, वारुणी ऐन्द्री की भांति, वायव्या आग्नेयी की भांति, सौम्या ऐन्द्री की भांति, ऐशानी आग्नेयी की भांति, विमला के जीव आग्नेयी की भांति और अजीव ऐन्द्री की भांति वक्तव्य हैं। इसी प्रकार तमा की वक्तव्यता, इतना विशेष है -अरूपि - अजीव के छह प्रकार हैं, अध्वा समय वक्तव्य नहीं है ।
शरीर - पद
८. भंते! शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! शरीर पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे- औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण ।
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