Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ९ उ. ३३ : सू. २३५-२४०
२३५. भगवान गौतम जमालि अनगार को दिवंगत जानकर जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहां आए। आकर श्रमण भगवान महावीर को वंदन नमस्कार किया । वंदन - नमस्कार कर इस प्रकार कहा- देवानुप्रिय का अंतेवासी कुशिष्य जमालि नामक अनगार था । भंते! वह जमालि अनगार कालमास में काल (मृत्यु) को प्राप्त कर कहा गया है ? कहां उपपन्न हुआ है ?
अयि गौतम ! इस संबोधन से संबोधित कर श्रमण भगवान महावीर ने भगवान् गौतम से इस प्रकार कहा—–गौतम! मेरा अंतेवासी कुशिष्य जमालि नामक अनगार था । उसने तब मेरे इस प्रकार के आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करने पर, इस अर्थ पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की। इस अर्थ पर अश्रद्धा, अप्रतीति और अरुचि करते हुए उसने दूसरी बार भी मेरे पास से स्वयं अपक्रमण किया । अपक्रमण कर बहुत असद्भाव की उद्भावना और मिथ्यात्व के अभिनिवेश के द्वारा स्व, पर तथा दोनों को भ्रांत करता हुआ, मिथ्या धारणा से व्युत्पन्न करता हुआ बहुत वर्ष तक श्रामण्य पर्याय का पालन कर, अर्द्धमासिकी संलेखना से शरीर को कृश बना, अनशन के द्वारा तीसभक्त का छेदन कर, उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किए बिना ही कालमास में काल को प्राप्त कर, लांतक - कल्प में तेरह सागर की स्थिति वाले किल्विषिक-देवों में किल्विषिक -देव के रूप में उपपन्न हुआ है।
२३६. भंते! किल्विषिक - देव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! किल्विषिक - देव तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे -तीन पल्योपम स्थिति वाले, तीन सागरोपम स्थिति वाले, तेरह सागरोपम स्थिति वाले ।
२३७. भंते! तीन पल्योपम स्थिति वाले किल्विषिक -देव कहां रहते हैं ?
गौतम ! ज्योतिष्क- देवों के ऊपर सौधर्म - ईशान कल्प- देवों के नीचे इनमें तीन पल्योपम स्थिति वाले किल्विषिक देव रहते हैं ।
२३८. भंते! तीन सागरोपम स्थिति वाले किल्विषिक - देव कहां रहते हैं ?
गौतम ! सौधर्म - ईशान - कल्प के ऊपर सनत्कुमार - माहेन्द्र - कल्प से नीचे - इनमें तीन सागरोपम स्थिति वाले किल्विषिक -देव रहते हैं।
२३९. भंते! तेरह सागरोपम स्थिति वाले किल्विषिक - देव कहां रहते हैं ?
गौतम ! ब्रह्मलोक - कल्प से ऊपर, लांतक - कल्प से नीचे इनमें तेरह सागरोपम स्थिति वाले किल्विषिक - देव रहते हैं ।
२४०. भंते! किल्विषिक - देव किन कर्मादान - कर्मबंध के हेतुओं के कारण किल्विषिक - देव के रूप में उपपन्न होते हैं ?
गौतम! जो ये जीव आचार्य - प्रत्यनीक, उपाध्याय - प्रत्यनीक, कुल- प्रत्यनीक, गण- प्रत्यनीक, संघ- प्रत्यनीक, आचार्य - उपाध्याय का अयश, अवर्ण और अकीर्ति करने वाले, बहुत असद्भाव की उद्भावना और मिथ्यात्व के अभिनिवेश के द्वारा स्व, पर तथा दोनों को भ्रांत करते हुए, मिथ्या धारणा से व्युत्पन्न करते हुए बहुत वर्ष तक श्रामण्य पर्याय का पालन करते हैं । पालन कर उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किए बिना ही कालमास में काल (मृत्यु) को प्राप्त कर किल्विषिक- देवों में किल्विषिक - देव के रूप में उपपन्न होते हैं,
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