Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ९ : उ. ३३,३४ : सू. २४०-२४६ जैसे-तीन पल्योपम की स्थिति वालों में, तीन सागरोपम की स्थिति वालों में अथवा तेरह सागरोपम की स्थिति वालों में। २४१. भंते! किल्विषिक देव आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनंतर उन देवलोकों से च्यवन कर कहां जाते हैं? कहां उपपन्न होते हैं ? गौतम! यावत् चार-पांच नैरयिक-, तिर्यग्योनिक-, मनुष्य- और देव-भव ग्रहण कर संसार में अनुपर्यटन कर उसके पश्चात् सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होते हैं, सब दुःखों का अंत करते हैं। कुछ देव आदि-अंतहीन, दीर्घ पथ वाले चतुर्गत्यात्मक संसार-कांतार में अनुपर्यटन
करते हैं। २४२. भंते! जमालि अनगार ने अरस-आहार, विरस-आहार, प्रांत-आहार, रूक्ष-आहार और तुच्छ-आहार किया। वह अरसजीवी, विरसजीवी, अंतजीवी, प्रांतजीवी, रुक्षजीवी, तुच्छजीवी, उपशांतजीवी, प्रशांतजीवी और विविक्तजीवी था। हां, गौतम! जमालि अनगार ने अरस-आहार, विरस-आहार किया यावत् वह विविक्तजीवी
था। २४३. भंते! यदि जमालि अनगार ने अरस-आहार, विरस-आहार किया यावत् वह विविक्तजीवी था तो भंते! जमालि अनगार कालमास में काल (मृत्यु) को प्राप्त कर लांतककल्प में तेरह सागरोपम स्थिति वाले किल्विषिक देवलोक में किल्विषिक देव के रूप में उपपन्न हुआ? गौतम! जमालि अनगार आचार्य का प्रत्यनीक, उपाध्याय का प्रत्यनीक, आचार्य-उपाध्याय का अयश, अवर्ण और अकीर्ति करने वाला था। वह बहुत असद्भाव की उद्भावना और मिथ्यात्व-अभिनिवेश के द्वारा स्व, पर तथा दोनों को भ्रांत करता हुआ, मिथ्याधारणा में व्युत्पन्न करता हुआ, वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय का पालन कर, अर्द्धमासिकी संलेखना में अनशन के द्वारा तीस-भक्त का छेदन कर, उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किए बिना कालमास में काल को प्राप्त कर लांतक कल्प में तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक-देवों में किल्विषिक-देव के रूप में उपपन्न हुआ है। २४४. भंते! जमालि अनगार आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम! चार-पांच तिर्यक्योनिक-, मनुष्य-, देव-भव ग्रहण कर, संसार का अनुपर्यटन कर उसके पश्चात् सिद्ध, प्रशांत, मुक्त, परिनिर्वृत और सब दुःखों का अंत करेगा। २४५. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
चौत्तीसवां उद्देशक एक के वध में अनेक-वध-पद २४६. उस काल और उस समय में राजगृह नगर यावत् गौतम इस प्रकार बोलेभंते! पुरुष पुरुष का हनन करता हुआ क्या पुरुष का हनन करता है? नो-पुरुष का हनन करता है?
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