Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 434
________________ श. ९ : उ. ३३ : सू. १४४-१४८ भगवती सूत्र -नपुंसक-पुरुष) स्थविर, कंचुकी-जनों-प्रतिहार-गण और महत्तरक-गण के वृन्द से घिरी हुई अन्तःपुर से निकली। निकलकर जहां बाहरी उपस्थानशाला है, जहां धार्मिक यानप्रवर है, वहां आई। वहां आकर धार्मिक यानप्रवर पर आरूढ़ हो गई। १४५. ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानंदा ब्राह्मणी के साथ अपने परिवार से परिवृत होकर ब्राह्मणकुंडग्राम नगर के बीचोंबीच निर्गमन करते हैं। निर्गमन कर जहां बहुशालक चैत्य है वहां आते हैं, वहां आकर तीर्थंकर के छत्र आदि अतिशयों को देखते हैं। देखकर धार्मिक यानप्रवर को स्थापित करते हैं, स्थापित कर धार्मिक यानप्रवर से उतरते हैं। उतरकर पांच प्रकार के अभिगमों से श्रमण भगवान महावीर के पास जाते हैं, (जैसे-१. सचित्त द्रव्यों को छोड़ना २. अचित्त द्रव्यों को छोड़ना ३. एक शाटक वाला उत्तरासंग करना ४. दृष्टिपात होते ही बद्धांजलि होना ५. मन को एकाग्र करना) जहां श्रमण भगवान महावीर हैं, वहां आते हैं। वहां आकर दायीं ओर से प्रारंभ कर तीन बार प्रदक्षिणा करते हैं, प्रदक्षिणा कर वंदन-नमस्कार करते हैं, वंदन-नमस्कार कर तीन प्रकार की पर्युपासना के द्वारा पर्युपासना करते १४६. देवानंदा ब्राह्मणी धार्मिक यानप्रवर से उतरती है। उतरकर बहुत कुब्जा, यावत् चेटिका-समूह, वर्षधर, स्थविर, कंचुकी-जनों और महत्तरक-गण के वृन्द से घिरी हुई पांच प्रकार के अभिगमों से श्रमण भगवान् महावीर के पास जाती है। (जैसे-१. सचित्त द्रव्यों को छोड़ना २. अचित्त द्रव्यों को छोड़ना ३. शरीरयष्टि को विनयावनत करना ४. दृष्टिपात होते ही बद्धांजलि होना ५. मन को एकाग्र करना) जहां श्रमण भगवान महावीर हैं, वहां आती है। आ कर श्रमण भगवान महावीर को दायीं ओर से प्रारंभ कर तीन बार प्रदक्षिणा करती है। प्रदक्षिणा कर वंदन-नमस्कार करती है, वंदन-नमस्कार कर ऋषभदत्त ब्राह्मण को आगे कर, स्थित हो परिवार--सहित शुश्रूषा और नमस्कार करती हुई सम्मुख रहकर विनयपूर्वक बद्धांजलि पर्यपासना कर रही है। १४७. उस समय देवानंदा ब्राह्मणी के स्तनों से दूध की धार बह चली और नेत्र जल से भींग गए। हर्षातिरेक से स्थूल होती हुई भुजा के लिए बाजूबंध अवरोध बन गए, कंचुकी विस्तृत हो गई, मेघ की धारा से आहत कदम्बपुष्प की भांति रोमकूप समुच्छ्व सित हो गए। वह श्रमण भगवान महावीर को अनिमेष दृष्टि से देख रही है। १४८. भंते! यह कहकर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर वे इस प्रकार बोले-भंते! क्या देवानंदा ब्राह्मणी के स्तनों से दूध की धार बह चली? नेत्र जल से भींग गए? हर्षातिरेक से स्थूल होती हुई भुजा के लिए बाजूबंद अवरोध बन गए? कंचुकी विस्तृत हो गई? मेघ की धारा से आहत कदम्बपुष्प की भांति रोमकूप उच्छ्वसित हो गए? वह देवानुप्रिय को अनिमेष दृष्टि से देख रही है? हे गौतम! श्रमण भगवान महावीर ने भगवान गौतम से इस प्रकार कहा- गौतम! देवानंदा ब्राह्मणी मेरी माता है, मैं देवानंदा ब्राह्मणी का आत्मज हूं। इसलिए उस पूर्व पुत्र-स्नेह राग के कारण देवानंदा ब्राह्मणी के स्तनों सदध की धार बह चली। नेत्र जल से भींग गए। हर्षातिरेक से स्थूल होती हुई भुजा के लिए बाजूबंध अवरोध बन गए, कंचुकी विस्तृत हो गई। मेघ की ३६४

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