Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ९ : उ. ३३ : सू. १८६-१९१ बहुमूल्य वाले वस्त्रों से शरीर को अलंकृत किया। जहां क्षत्रियकुमार जमालि के पिता हैं, वहां आया, वहां आकर दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली दसनखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता को 'जय हो-विजय हो' के द्वारा वर्धापित किया। वर्धापित कर इस प्रकार बोला-देवानुप्रिय! मुझे जो करणीय है, उसका संदेश
१८७. क्षत्रियकुमार जमालि के पिता नापित को इस प्रकार बोले-देवानुप्रिय! तुम परम यत्न से
क्षत्रियकुमार जमालि के चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण-प्रायोग्य अग्र केशों को काटो। १८८. क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के इस प्रकार कहने पर नापित हृष्ट-तुष्ट हो गया। दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली दसनखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर 'स्वामी! आपकी आज्ञा के अनुसार ऐसा ही होगा।' यह कह कर विनयपूर्वक वचन को स्वीकार किया। स्वीकार कर सुरभित गंधोदक से हाथ पैर का प्रक्षालन किया। प्रक्षालन कर आठ पट वाले शुद्ध वस्त्र से मुख को बांधा, बांधकर परम यत्न से क्षत्रियकुमार जमालि के चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण-प्रायोग्य अग्रकेशों को काटा। १८९. क्षत्रियकुमार जमालि की माता ने हंस लक्षण वाला पटशाटक में अग्रकेशों को ग्रहण किया। ग्रहण कर सुरभित गंधोदक से प्रक्षालन किया। प्रक्षालन कर प्रधान और प्रवर गंध माल्य से अर्चा की, अर्चित कर शुद्ध वस्त्र में बाधा। बांधकर रत्न-करंडक में रखा। रख कर हार, जल-धारा, सिंदुवार (निर्गुण्डी) के फूल और टूटी हुई मोतियों की लड़ी के समान दुःस्सह पुत्र-वियोग के कारण बार-बार आंसू बहाती हुई इस प्रकार बोली-बहुत तिथि, पर्वणी (पूर्णिमा आदि) उत्सव, नाग-पूजा, यज्ञ, इन्द्रोत्सव आदि के अवसर पर क्षत्रियकुमार जमालि का यह अंतिम दर्शन होगा। यह चिन्तन कर उस रत्नकरंडक को अपने सिरहाने के नीचे रखा। १९०. क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता ने दूसरी बार उत्तराभिमुख सिंहासन की रचना कराई। करा कर क्षत्रियकुमार जमालि को श्वेत-पीत कलशों से स्नान कराया। स्नान करा कर रोएंदार, सुकुमाल सुरभित गंध-वस्त्र से गात्र को पौंछा। पौंछकर सरस गोशीर्षचंदन का गात्र पर अनुलेप किया। अनुलेप कर नासिका की निःश्वास वायु से उड़ने वाला, चक्षुहर वर्ण और स्पर्श से युक्त, अश्व की लाल से भी अधिक प्रतनु, धवल किनार पर सोने के तार से जड़ा हुआ बहुमूल्य अथवा महापुरुष योग्य हंस लक्षण वाला पटशाटक पहनाया। पहना कर हार पहनाया। हार पहना कर अर्द्धहार पहनाया। अर्द्धहार पहना कर एकावली पहनाई। एकावली पहना कर मुक्तावली पहनायी। मुक्तावली पहना कर रत्नावली पहनायी। रत्नावली पहना कर इसी प्रकार अंगद, केयूर, कड़े, बाजूबंध, करधनी, दसों अंगुलियों में मुद्रिकाएं, विकक्षसूत्र (उत्तरासंग पर पहना जाने वाला आभरण) सूरज के आकार का आभरण, कण्ठमुरवि, मुक्तामाला, कुण्डल, चूड़ामणि, रत्नों की प्रचुरता से उत्कृष्ट बना हुआ विचित्र मुकुट पहनाया । और अधिक क्या? गूंथी हुई, वेष्टित, पूरित और संहत की हुई इन चार प्रकार की. मालाओं से क्षत्रियकुमार जमालि को कल्पवृक्ष की भांति अलंकृत, विभूषित कर दिया। १९१. क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुला कर इस प्रकार
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