Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ९ : उ. ३१ : सू. ६४-६९
गौतम ! स्त्री - वेद वाला भी होता है, पुरुष वेद वाला भी होता है, पुरुष नपुंसक वेद वाला भी होता है ।
६५. भंते! क्या वह कषाय सहित होता है ? कषाय-रहित होता है ?
गौतम ! वह कषाय सहित भी होता है, कषाय रहित भी होता है ।
यदि कषाय-रहित होता है तो क्या उपशांत-कषाय वाला होता है, क्षीण कषाय वाला होता है ?
गौतम ! उपशांत-कषाय वाला नहीं होता। क्षीण कषाय वाला होता है।
भंते! यदि कषाय सहित होता है तो कितने कषायों वाला होता है ?
गौतम ! चार, तीन, दो अथवा एक कषाय वाला होता है। चार कषाय वाला होने पर चार संज्वलन - क्रोध, मान, माया और लोभ वाला होता है। तीन कषाय वाला होने पर तीन संज्वलन - मान, माया और लोभ वाला होता है। दो कषाय वाला होने पर दो संज्वलन - माया और लोभ वाला होता है। एक कषाय वाला होने पर एक संज्वलन - लोभ वाला होता है।
६६. भंते! उसमें कितने अध्यवसान प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! असंख्येय अध्यवसान प्रज्ञप्त हैं ।
६७. भंते! वे अध्यवसान प्रशस्त होते हैं अथवा अप्रशस्त ?
गौतम ! प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं होते ।
६८. भंते! वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी उन वर्तमान प्रशस्त अध्यवसानों के द्वारा अनन्त नैरयिक- जन्मों (भवग्रहण) से अपने आपको विसंयुक्त कर होता है, अनन्त तिर्यक्-जन्मों से अपने आपको विसंयुक्त कर लेता है, अनंत मनुष्य जन्मों से अपने आपको विसंयुक्त कर लेता है, अनंत देव-जन्मों से अपने आपको विसंयुक्त कर लेता है। जो ये नैरयिक-, तिर्यग्योनिक, - मनुष्य और देव-गति नाम की चार उत्तर प्रकृतियां हैं, उनके औपग्रहिक अनन्तानुबंधीक्रोध, मान, माया और लोभ को क्षीण करता है। उसे क्षीण कर अप्रत्याख्यानावरण - कषायक्रोध, मान, माया और लोभ को क्षीण करता है। उसे क्षीण कर प्रत्याख्यानावरण - क्रोध, मान, माया और लोभ को क्षीण करता है। उसे क्षीण कर संज्वलन - क्रोध, मान, माया और लोभ को क्षीण करता है। उसे क्षीण कर पंचविध ज्ञानावरणीय, नवविध दर्शनावरणीय, पंचविध आंतरायिक और मोहनीय को सिर से छिन्न किए हुए तालवृक्ष की भांति क्षीण कर कर्मरज के विकिरणकारक अपूर्वकरण में अनुप्रविष्ट होता है। उसके अनंत, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, कृत्स्न, प्रतिपूर्ण केवलज्ञान दर्शन समुत्पन्न होता है ।
६९. भंते! क्या वह श्रुत्वा केवलज्ञानी केवलि - प्रज्ञप्त-धर्म का आख्यान, प्रज्ञापन अथवा प्ररूपण करता है ?
हां, वह केवलि - प्रज्ञप्त-धर्म का आख्यान भी करता है, प्रज्ञापन भी करता है, प्ररूपण भी करता है ।
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