Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
भगवती सूत्र
श. ९ : उ. ३२ : सू. ९८-१००
एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और संख्येय पंकप्रभा में होते हैं यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और संख्येय अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में, दो वालुकाप्रभा में और संख्येय पंकप्रभा में होते हैं। इस प्रकार इस क्रम से जैसे दस नैरयिकों के त्रि-संयोगज, चतुष्क-संयोगज यावत् सप्त-संयोगज भंग कहे गए हैं वैसे ही यहां वक्तव्य हैं। सप्त-संयोगज का पश्चिम आलापक-अथवा संख्येय रत्नप्रभा में, संख्येय
शर्कराप्रभा में यावत् संख्येय अधःसप्तमी में होते हैं। ९९. भंते! असंख्येय नैरयिक नैरयिक-प्रवेशनक में प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं?-पृच्छा । गांगेय! रत्नप्रभा में होते हैं यावत् अथवा अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में और असंख्येय शर्कराप्रभा में होते हैं। इस प्रकार जैसे संख्येय नैरयिकों के द्वि-संयोगज यावत् सप्त-संयोगज भंग कहे गए हैं, वैसे ही असंख्येय नैरयिकों के वक्तव्य हैं, इतना विशेष है-असंख्येय अभ्यधिक वक्तव्य है, शेष पूर्ववत्, यावत् सप्त संयोग का पश्चिम आलापक-अथवा असंख्येय रत्नप्रभा में, असंख्येय शर्कराप्रभा में यावत्
असंख्येय अधःसप्तमी में होते हैं। १००. भंते! उत्कृष्ट नैरयिक नैरयिक-प्रवेशनक में प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं?-पृच्छा । गांगेय! सब रत्नप्रभा में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में और शर्कराप्रभा में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में और वालुकाप्रभा में होते हैं यावत् अथवा रत्नप्रभा में और अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में और वालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में और अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में, वालुकाप्रभा में
और पंकप्रभा में होते हैं यावत् अथवा रत्नप्रभा में, वालुकाप्रभा में और अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में, पंकप्रभा में और धूमप्रभा में होते हैं। इस प्रकार जैसे रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए तीन पृथ्वियों के त्रि-संयोगज भंग कहे गए हैं, वैसे ही वक्तव्य हैं यावत् अथवा रत्नप्रभा में, तमा में और अधःसप्तमी में होते हैं।
अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में, वालुकाप्रभा में और पंकप्रभा में होते हैं, अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में, वालुकाप्रभा में और धूमप्रभा में होते है यावत् अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में, वालुकाप्रभा में और अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में, पंकप्रभा में और धूमप्रभा में होते हैं। इस प्रकार जैसे रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए चार पृथ्वियों के चतुष्क-संयोगज भंग कहे गए हैं, वैसे ही वक्तव्य हैं यावत् अथवा रत्नप्रभा में, धूमप्रभा में, तमा में और अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में, वालुकाप्रभा में, पंकप्रभा में और धूमप्रभा में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा यावत् पंकप्रभा में और तमा में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में यावत् पंकप्रभा में और अधःसप्तमी में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में, वालुकाप्रभा में, धूमप्रभा में और तमा में होते हैं। इस प्रकार रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए पांच पृथ्वियों के पंच-संयोगज भंग
३५५