Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ८ : उ. १० : सू. ४७०-४८१
भगवती सूत्र
द्रव्य-देश नहीं हैं ५. द्रव्य आर द्रव्य-देश नहीं हैं। ६. द्रव्य और अनेक द्रव्य-देश नहीं हैं।
७. अनेक द्रव्य और द्रव्य-देश नहीं हैं। ८. अनेक द्रव्य और अनेक द्रव्य-देश नहीं हैं। ४७१. भंते! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश क्या द्रव्य है? द्रव्य-देश है?–पृच्छा। गौतम! स्यात् द्रव्य है, स्यात् द्रव्य-देश है; स्यात् अनेक द्रव्य हैं, स्यात् अनेक द्रव्य-देश हैं, स्यात् द्रव्य और द्रव्य-देश हैं। शेष भंग नहीं बनते इसलिए उनका प्रतिषेध करणीय है। ४७२. भंते! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश क्या द्रव्य है? द्रव्य-देश है?-पृच्छा। गौतम! वे स्यात् द्रव्य है, स्यात् द्रव्य-देश है इसी प्रकार सात भंग वक्तव्य है यावत् स्यात्
अनेक द्रव्य और द्रव्य-देश हैं। अनेक द्रव्य और अनेक द्रव्य देश नहीं हैं। ४७३. भंते! पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश क्या द्रव्य है?-पृच्छा। गौतम! वे स्यात् द्रव्य हैं, स्यात् द्रव्य-देश हैं, आठों भंग वक्तव्य हैं यावत् स्यात् अनेक द्रव्य
और अनेक द्रव्य-देश हैं। जैसे पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेशों के भंग बतलाए गए हैं वैसे ही पांच, छह, सात यावत् असंख्येय प्रदेशों के भंग वक्तव्य हैं। ४७४. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के अनंत प्रदेश क्या द्रव्य है?
इसी प्रकार स्यात् द्रव्य है यावत् अनेक द्रव्य और अनेक द्रव्य-देश हैं। ४७५. भंते! लोकाकाश के प्रदेश कितने प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! लोकाकाश के असंख्येय प्रदेश प्रज्ञप्त हैं। ४७६. भंते! एक एक जीव के जीव-प्रदेश कितने प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! जितने लोकाकाश के प्रदेश हैं, उतने ही प्रत्येक जीव के जीव-प्रदेश प्रज्ञप्त हैं। कर्मों का अविभाग-परिच्छेद-पद ४७७. भंते! कर्म-प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! कर्म प्रकृतियां आठ प्रज्ञप्त हैं? जैसे-ज्ञानावरणीय यावत् आंतरायिक। ४७८. भंते! नैरयिकों के कर्म-प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं? गौतम! नैरयिकों के कर्म-प्रकृतियां आठ प्रज्ञप्त हैं। इस प्रकार वैमानिक पर्यंत सब जीवों के
आठ कर्म-प्रकृतियां स्थापनीय हैं। ४७९. भंते! ज्ञानावरणीय-कर्म के अविभाग-परिच्छेद कितने प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! अनंत अविभाग-परिच्छेद प्रज्ञप्त हैं। ४८०. भंते ! नैरयिकों के ज्ञानावरणीय-कर्म के अविभाग-परिच्छेद कितने प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! अनंत अविभाग-परिच्छेद प्रज्ञप्त हैं। ४८१. इस प्रकार वैमानिक-पर्यन्त सब जीवों की पृच्छा। गौतम! अनंत अविभाग-परिच्छेद प्रज्ञप्त हैं। जिस प्रकार ज्ञानावरणीय के अनंत अविभाग-परिच्छेद कहे गए हैं, उसी प्रकार आठों कर्म
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