Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. १० : सू. ४९६-५०४ ४९६. भंते! जिसके नाम है क्या उसके गोत्र होता है? जिसके गोत्र है, क्या उसके नाम होता
गौतम! ये दोनों परस्पर नियमतः होते हैं। ४९७. भंते! जिसके नाम है क्या उसके आंतरायिक होता है? जिसके आंतरायिक है क्या उसके नाम होता है? गौतम! जिसके नाम है उसके आंतरायिक स्यात् होता है स्यात् नहीं होता। जिसके
आंतरायिक है उसके नाम नियमतः होता है। ४९८. भंते! जिसके गोत्र है क्या उसके आंतरायिक होता है? जिसके आंतरायिक है क्या उसके गोत्र होता है? गौतम! जिसके गोत्र है उसके आंतरायिक स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता। जिसके
आंतरायिक है उसके गोत्र नियमतः होता है। पुद्गली-पुद्गल-पद ४९९. भंते ! जीव क्या पुद्गली है? पुद्गल है?
गौतम! जीव पुद्गली भी है, पुद्गल भी है। ५००. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जीव पुद्गली भी है, पुद्गल भी है।
गौतम! जैसे छत्र के कारण छत्री, दण्ड के कारण दण्डी, घट के कारण घटी, पट के कारण पटी, कर के कारण करी कहलाता है, गौतम! इसी प्रकार जीव भी श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा पुद्गली और अपने चैतन्यमय स्वरूप की अपेक्षा पुद्गल कहलाता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीव पुद्गली भी है, पुद्गल भी है। ५०१. भंते! क्या नैरयिक पुद्गली है? पुद्गल है?
नैरयिक से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डक जीव की भांति वक्तव्य हैं, इतना विशेष है जिसके जितनी इन्द्रियां हैं, उसके उतनी इन्द्रियां वक्तव्य हैं। ५०२. भंते! क्या सिद्ध पुद्गली है? पुद्गल है।
गौतम! पुद्गली नहीं है, पुद्गल है। ५०३. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सिद्ध पुद्गली नहीं है, पुद्गल है ?
गौतम! जीव की अपेक्षा से। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सिद्ध पुद्गली नहीं है, पुद्गल है। ५०४. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।