Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ९ : उ. ३१ : सू. ४३-५०
भगवती सूत्र यदि कषाय-सहित होता है तो कितने कषायों वाला होता है? गौतम! चार-क्रोध, मान, माया और लोभ वाला होता है। ४४. भंते! उसमें कितने अध्यवसान प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! असंख्येय अध्यवसान प्रज्ञप्त हैं। ४५. भंते! वे अध्यवसान प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त?
गौतम! प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं होते। ४६. भंते! वह अश्रुत्वा-अवधिज्ञानी उन वर्तमान प्रशस्त अध्यवसानों के द्वारा अनन्त नैरयिक-जन्मों (भव-ग्रहण) से अपने आपको विसंयुक्त कर लेता है। अनन्त तिर्यगयोनिक-जन्मों से अपने आपको विसंयुक्त कर लेता है, अनंत मनुष्य-जन्मों से अपने आपको विसंयुक्त कर लेता है, अनंत देव-जन्मों से अपने आपको विसंयुक्त कर लेता है, जो नैरयिक-, तिर्यंच-, मनुष्य- और देव-गति नाम की चार उत्तर प्रकृतियां हैं, उनके औपग्रहिक (आलंबनभूत) अनन्तानुबंधी-क्रोध, मान, माया और लोभ को क्षीण करता है। उसे क्षीण कर अप्रत्याख्यानावरण-क्रोध, मान, माया और लोभ को क्षीण करता है। उसे क्षीण कर प्रत्याख्यानावरण-क्रोध, मान, माया और लोभ को क्षीण करता है। उसे क्षीण कर संज्वलन-क्रोध, मान, माया और लोभ को क्षीण करता है। उसे क्षीण कर पंचविध ज्ञानावरणीय, नवविध दर्शनावरणीय, पंचविध आंतरायिक और मोहनीय को सिर से छिन्न किए हुए ताल वृक्ष की भांति क्षीण कर, कर्मरज के विकिरणकारक अपूर्वकरण में अनुप्रविष्ट होता है। उसके अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, कृत्स्न, प्रतिपूर्ण, केवलज्ञान-दर्शन समुत्पन्न होता है। ४७. भंते! क्या वह अश्रुत्वा-केवलज्ञानी केवलि-प्रज्ञप्त-धर्म का आख्यान, प्रज्ञापना अथवा प्ररूपण करता है? गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। केवल इतना अपवाद है-एक ज्ञात (दृष्टान्त) अथवा एक व्याकरण (एक प्रश्न का उत्तर) करता है। ४८. भंते! क्या वह प्रव्रज्या देता है, मुण्ड करता है?
गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वह प्रव्रज्या और मुंडन के लिए उपदेश देता है। ४९. भंते! क्या वह सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अन्त करता है?
हां, वह सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। ५०. भंते! क्या वह ऊर्ध्व देश में होता है? अधो देश में होता है? तिर्यक् देश में होता है?
गौतम! वह ऊर्ध्व देश में भी होता है, अधो देश में भी होता है, तिर्यक देश में भी होता है। ऊर्ध्व देश में होता है-शब्दापाति, विकटापाति, गंधापाति, मालवंत पर्वतों में और वृत्त वैताढ्य पर्वतों में होता है। संहरण (अपहरण) की अपेक्षा सोमनस वन में भी होता है, पंडकवन में भी होता है।
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