Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. १० : सू. ४५५-४६२
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गौतम ! जिसके उत्कष्ट ज्ञानाराधना है, उसके दर्शनाराधना उत्कृष्ट अथवा अजघन्य - उत्कृष्ट होती है। जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना है, उसके ज्ञानाराधना उत्कृष्ट, जघन्य अथवा अजघन्यअनुत्कृष्ट होती है।
४५६. भंते! जिसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना है, क्या उसके उत्कृष्ट चरित्राराधना है, जिसके उत्कृष्ट चरित्राराधना है, क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना है ?
गौतम ! जिसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना है उसके चरित्राराधना उत्कृष्ट अथवा अजघन्य - उत्कृष्ट होती है। जिसके उत्कृष्ट चरित्राराधना है, उसके ज्ञानाराधना उत्कृष्ट, जघन्य अथवा अजघन्य - अनुत्कृष्ट होती है ।
४५७. भंते! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना है क्या उसके उत्कृष्ट चरित्राराधना है ? जिसके उत्कृष्ट चरित्राराधना है क्या उसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना है ?
गौतम ! जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना है, उसके चरित्राराधना उत्कृष्ट, जघन्य अथवा अजघन्य- अनुत्कृष्ट होती है। जिसके उत्कृष्ट चरित्राराधना है उसके दर्शनाराधना नियमतः उत्कृष्ट होती है ।
४५८. भंते! उत्कृष्ट ज्ञानाराधना की आराधना कर जीव कितने भवों में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है ?
गौतम ! कोई जीव उसी भव में सिद्ध हो जाता है यावत् सब दुःखों का अंत कर देता है। कोई जीव कल्प- अथवा कल्पातीत स्वर्ग में उपपन्न हो जाता है ।
४५९. भंते! उत्कृष्ट दर्शनाराधना की आराधना कर जीव कितने भवों में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है ?
गौतम ! कोई जीव उसी भव में सिद्ध हो जाता है यावत् सब दुःखों का अंत कर देता है। कोई जीव कल्प अथवा कल्पातीत स्वर्ग में उपपन्न हो जाता है ।
४६०. भंते! उत्कृष्ट चरित्राराधना की आराधना कर जीव कितने भवों में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है ?
गौतम ! कोई जीव उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत कर देता है। कोई जीव कल्पातीत स्वर्ग में उपपन्न हो जाता है।
४६१. भंते! मध्यम ज्ञानाराधना की आराधना कर जीव कितने भवों में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है ?
गौतम ! कोई जीव दूसरे भव में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है, तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करता ।
४६२. भंते! मध्यम दर्शनाराधना की आराधना कर जीव कितने भवों में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है ?
गौतम ! कोई जीव दूसरे भव में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है, तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करता ।
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