Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ८ : उ. ९ : सू. ४१४-४२२
भगवती सूत्र ४१४. भंते! तैजस-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! तैजस-शरीर-प्रयोग-बंध के तीन हेतु हैं-१. वीर्य-सयोग-सद्-द्रव्यता २. प्रमाद ३. कर्म-, योग-, भव- और आयुष्य-सापेक्ष तैजस-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ४१५. भंते! तैजस-शरीर-प्रयोग-बंध क्या देश-बंध है? सर्व-बंध है?
गौतम! देश-बंध है, सर्व-बंध नहीं है? ४१६. भंते! तैजस-शरीर-प्रयोग-बंध काल की अपेक्षा कितने काल का है? गौतम! तैजस-शरीर-प्रयोग-बंध काल की अपेक्षा दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-अनादिक
अपर्यवसित, अनादिक सपर्यवसित। ४१७. भंते! तैजस-शरीर-प्रयोग-बंध का अंतर काल की अपेक्षा कितने काल का है?
गौतम! अनादिक-अपर्यवसित में अंतर नहीं है, अनादिक-सपर्यवसित में अंतर नहीं है। ४१८. भंते! इन तैजस-शरीर के देश-बंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहु,
तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गौतम! तैजस-शरीर के अबंधक जीव सबसे अल्प हैं, देश-बंधक अनंत-गुण हैं। कर्म-शरीर-प्रयोग की अपेक्षा ४१९. भंते! कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध आठ प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-ज्ञानावरणीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध यावत् आंतरायिक-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध। ४२०. भंते! ज्ञानावरणीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! ज्ञानावरणीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के सात हेतु हैं-ज्ञान का विरोध अथवा प्रतिकूल आचरण, ज्ञान का अपलाप, ज्ञान के ग्रहण में विघ्न उपस्थित करना, ज्ञान के प्रति अप्रीति रखना, ज्ञान की अवहेलना करना, ज्ञान में विसंवाद दिखलाना, ज्ञानावरणीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ४२१. भंते! दर्शनावरणीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! दर्शनावरणीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के सात हेतु हैं-दर्शन का विरोध अथवा प्रतिकूल आचरण, दर्शन का अपलाप, दर्शन के ग्रहण में विघ्न उपस्थित करना, दर्शन के प्रति अप्रीति रखना, दर्शन में विसंवाद दिखलाना, दर्शनावरणीय-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ४२२. भंते! सात-वेदनीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! सात-वेदनीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के हेतु है-प्राणों की अनुकंपा, भूतों की अनुकंपा,जीवों की अनुकंपा, सत्त्वों की अनुकंपा अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःखित न करना, उन्हें दीन न बनाना, शरीर का अपचय करने वाला शोक पैदा न करना, अश्रुपात कराने वाला शोक पैदा न करना, लाठी आदि का प्रहार न करना, शारीरिक परिताप