Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. ९ : सू. ४००-४०५
४००. भंते! जोव रत्नप्रभा - पृथ्वी नैरयिक से नो- रत्नप्रभा - पृथ्वी नैरयिक में जन्म लेकर पुनः रत्नप्रभा - पृथ्वी- नैरयिक में जन्म लेता है। उस अवस्था में रत्नप्रभा - पृथ्वी - नैरयिक-वैक्रिय- शरीर - प्रयोग-बंध के अंतर की पृच्छा ।
गौतम! सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त अभ्यधिक- दस हजार वर्ष, उत्कृष्टतः वनस्पति-काल है। देश- बंध का अंतर जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः अनंतकाल-वनस्पति- काल है। इसी प्रकार यावत् अधः सप्तमी की वक्तव्यता, इतना विशेष है - जिसकी जो जघन्य स्थिति है, उसमें सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः अंतर्मुहूर्त्त अभ्यधिक कर देना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है ।
पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक और मनुष्य वायुकायिक की भांति वक्तव्य हैं। असुरकुमार, नागकुमार यावत् सहस्रार - देव - ये रत्नप्रभा - पृथ्वी - नैरयिक की भांति वक्तव्य हैं, इतना विशेष है - सर्व-बंध के अंतर की जिसकी जो जघन्य स्थिति है, उसमें अंतर्मुहूर्त्त अभ्यधिक कर देना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है ।
४०१. भंते! जीव आनत - देव से नो- आनत - देव में जन्म लेकर पुनः आनत देव में जन्म लेता है। उस अवस्था में आनत - देव- वैक्रिय - शरीर प्रयोग-बंध के अंतर की पृच्छा । गौतम! सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष - अभ्यधिक-अठारह - सागरोपम, उत्कृष्टतः अनंतकाल–वनस्पति-काल हैं। इसी प्रकार यावत् अच्युत की वक्तव्यता, इतना विशेष है - जिसकी जो स्थिति है, उसमें सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष अभ्यधिक कर देना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है ।
४०२. ग्रैवेयक - कल्पातीत की पृच्छा ।
गौतम ! सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष - अभ्यधिक- बाईस - सागरोपम, उत्कृष्टतः अनंतकाल-वनस्पति-काल है। देश बंध का अंतर जघन्यतः पृथक्त्व - वर्ष, उत्कृष्टतः वनस्पति-काल है।
४०३. भंते! अनुत्तरोपपातिक जीव की पृच्छा ।
गौतम ! सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष - अभ्यधिक- इकतीस-सागरोपम, उत्कृष्टतः संख्येय-सागरोपम है। देशबंध का अंतर जघन्यतः पृथक्त्व - वर्ष, उत्कृष्टतः संख्येय - सागरोपम है ।
४०४. भंते! इन वैक्रिय शरीर के देश -बंधक, सर्व-बंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
गौतम ! वैक्रिय - शरीर के सर्व-बंधक जीव सबसे अल्प हैं, देशबंधक असंख्येय-गुण हैं, अबंधक अनंत-गुण हैं।
आहारक- शरीर प्रयोग की अपेक्षा
४०५. भंते! आहारक- शरीर-प्रयोग-बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम! आहारक- शरीर प्रयोग-बंध एक आकार का प्रज्ञप्त है ।
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