Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ७ : उ. ७ : सू. १४०-१४७ १४०. भन्ते! नैरयिक कामी है अथवा भोगी?
नैरयिक से लेकर स्तनितकुमार तक जीव की भांति वक्तव्य है। १४१. पृथ्वीकायिक-जीवों के विषय में पृच्छा।
गौतम! पृथ्वीकायिक-जीव कामी नहीं हैं, भोगी हैं। १४२. भन्ते! पृथ्वीकायिक-जीव किस अपेक्षा से भोगी है?
गौतम! स्पर्शन-इन्द्रिय की अपेक्षा से। उनके स्पर्शन-इन्द्रिय है, इसलिए वे भोगी हैं। अपकायिक-, तेजस्कायिक-, वायुकायिक- और वनस्पतिकायिक-जीवों की वक्तव्यता पृथ्वीकायिक-जीवों के समान है। द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में यही वक्तव्यता है, केवल इतना विशेष है-वे जिह्वा और स्पर्शन-इन दो इन्द्रियों की अपेक्षा से भोगी हैं। त्रीन्द्रिय-जीवों के विषय में भी यही वक्तव्यता है, केवल इतना विशेष है-वे घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन-इन तीन इन्द्रियों की अपेक्षा से भोगी हैं। १४३. चतुरिन्द्रिय-जीवों के विषय में पृच्छा।
गौतम! चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं। १४४. भन्ते! चतुरिन्द्रिय-जीव किस अपेक्षा से कामी भी हैं, भोगी भी हैं?
गौतम! वे चक्षु-इन्द्रिय की अपेक्षा से कामी हैं, घ्राण-, जिह्वा- और स्पर्शन-इन्द्रियों की अपेक्षा से भोगी हैं। गौतम! इस अपेक्षा से वे कामी भी हैं, भोगी भी है। अवशिष्ट वैमानिक तक सभी दण्डकों की वक्तव्यता जीव के समान है। १४५. भन्ते! कामभोगी, नो कामी-नो भोगी और भोगी-इन जीवों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक हैं? गौतम! कामभोगी जीव सबसे अल्प हैं। नोकामी-नोभोगी उनसे अनन्त-गुना अधिक हैं। भोगी उनसे अनन्त-गुना अधिक हैं। दुर्बल शरीर वाले का भोग-परित्याग-पद १४६. भन्ते! छद्मस्थ मनुष्य जो किसी देवलोक में देव के रूप में उपपन्न होने के योग्य है, भन्ते! वह क्षीण-भोगी-दुर्बल शरीर वाला है। वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम से विपुल भोग्य भोगों का भोग करने में समर्थ नहीं है। भन्ते! क्या आप भी इस अर्थ को इस प्रकार कहते हैं? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम से विपुल भोग्य भोगों का भोग करने में समर्थ है, इसलिए वह भोगी है। वह भोगों का परित्याग
करता हुआ महानिर्जरा और महापर्यवसान को प्राप्त होता है। १४७. भन्ते! आधोवधि-ज्ञानी मनुष्य जो किसी देवलोक में देव के रूप में उपपन्न होने के योग्य है, भन्ते! वह क्षीण-भोगीदुर्बल शरीर वाला है। वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम से विपुल भोग्य भोगों का भोग करने में समर्थ नहीं है। भन्ते! क्या आप भी इस अर्थ को इस प्रकार कहते हैं?
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