Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
दशविधसंज्ञा - पद
१६१. भन्ते ! संज्ञा के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! संज्ञा के दश प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे - आहार - संज्ञा, भय-संज्ञा, मैथुन- संज्ञा, परिग्रह - -संज्ञा, क्रोध-संज्ञा, मान-संज्ञा, माया-संज्ञा, लोभ-संज्ञा, लोक-संज्ञा, ओघ संज्ञा । वैमानिक तक के सभी दण्डकों में दशों संज्ञाएं होती हैं ।
नैरयिकों की दशविध वेदना का पद
श. ७ : उ. ८, ९ : सू. १६१-१६९
१६२. नैरयिक दस प्रकार की वेदना का अनुभव करते रहते हैं, जैसे- सर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, खुजली, परवशता, ज्वर, दाह, भय और शोक ।
हस्ती और कुन्थु की अप्रत्याख्यानक्रिया का पद
१६३. भन्ते ! क्या हाथी और कुंथु के अप्रत्याख्यान - क्रिया समान होती है ?
हां, गौतम ! हाथी और कुंथु के अप्रत्याख्यान-क्रिया समान होती है ।
१६४. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- हाथी और कुंथु के अप्रत्याख्यान-क्रिया समान होती है ?
गौतम ! अविरति की अपेक्षा से । गौतम ! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है- हाथी और कुंथु के अप्रत्याख्यान-क्रिया समान होती है।
आधाकर्म आदि पद
१६५. भन्ते! ‘आधाकर्म' भोजन करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ क्या बांधता है ? क्या करता है ? क्या चय करता है ? क्या उपचय करता है ?
गौतम ! आधाकर्म भोजन करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ आयुष्य-कर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मों के शिथिल बन्धनबद्ध प्रकृतियों को गाढ़ बन्धनबद्ध करता है यावत् (पू. भ. १ / ४३६४४०) पण्डित शाश्वत है, पंडितत्व अशाश्वत है।
१६६. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है।
नवां उद्देशक
असंवृत अनगार की विक्रिया का पद
१६७. भन्ते ! क्या असंवृत अनगार बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण किए बिना एक वर्ण और एक रूप का निर्माण करने में समर्थ है ?
यह अर्थ संगत नहीं है ।
१६८. भन्ते ! क्या असंवृत अनगार बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का निर्माण करने में समर्थ है ?
हां, समर्थ है।
१६९. भन्ते! क्या वह मनुष्य-लोक में स्थित पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का
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