Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
काय की अपक्षा
११८. भन्ते ! सकायिक-जीव क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ?
गौतम ! पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। पृथ्वीकायिक- यावत् वनस्पतिकायिक- जीव ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं, नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, जैसे - मति- अज्ञान और श्रुत- अज्ञान वाले । त्रसकायिक-जीव सकायिक- जीवों की भांति वक्तव्य हैं।
११९. भन्ते! अकायिक-जीव क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ?
सिद्धों की भांति वक्तव्यता ।
सूक्ष्म- बादर की अपेक्षा
१२०. भन्ते ! सूक्ष्म जीव क्या ज्ञानी हैं ? पृथ्वीकायिक- जीवों की भांति वक्तव्यता ।
१२१. भन्ते ! बादर जीव क्या ज्ञानी हैं ?
श. ८ : उ. २ : सू. ११८-१२७
सकायिक- जीवों की भांति वक्तव्यता ।
१२२. भन्ते! नोसूक्ष्म-नोबादर जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं ?
सिद्धों की भांति वक्तव्यता ।
पर्याप्त अपर्याप्त की अपेक्षा
१२३. भन्ते! पर्याप्त-जीव क्या ज्ञानी हैं ?
सकायिक- जीवों की भांति वक्तव्यता ।
१२४. भन्ते! पर्याप्त नैरयिक-जीव क्या ज्ञानी हैं ?
नियमतः तीन ज्ञान और तीन अज्ञान होते हैं । इसी प्रकार असुरकुमार से स्तनितकुमार तक की वक्तव्यता नैरयिक की भांति ज्ञातव्य है । पर्याप्त पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता एकेन्द्रिय की भांति ज्ञातव्य है । इसी प्रकार यावत् पर्याप्त - चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता ।
१२५. भन्ते ! पर्याप्त - पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ?
तीन ज्ञान, तीन अज्ञान की भजना है। पर्याप्त मनुष्यों की वक्तव्यता सकायिक-जीवों की भांति ज्ञातव्य है । पर्याप्त वानमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की वक्तव्यता नैरयिक की भांति ज्ञातव्य है ।
१२६. भन्ते ! अपर्याप्त जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं ?
तीन ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है।
१२७. भन्ते! अपर्याप्त नैरयिक क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ?
तीन ज्ञान नियमतः होते हैं, तीन अज्ञान की भजना है। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक की वक्तव्यता एकेन्द्रिय की भांति
ज्ञातव्य |
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