Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. ७ : सू. २७४-२८०
असंवृत, एकान्त दण्ड और एकान्त बाल भी हों ।
२७४. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा- आर्यो ! किस कारण से हम तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पाप कर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पाप-कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले, कायिकी आदि क्रिया से युक्त, असंवृत, एकान्त दण्ड और एकान्त बाल भी हैं ?
२७५. अन्ययूथिकों ने भगवान स्थविरों से इस प्रकार कहा- आर्यो ! तुम अदत्त ले रहे हो, अदत्त का उपभोग कर रहे हो, अदत्त का अनुमोदन कर रहे हो । अदत्त का ग्रहण, उपभोग और अनुमोदन करने के कारण तुम तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पाप-कर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पाप कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले यावत् एकान्त बाल भी हो।
२७६. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा- आर्यो! कैसे हम अदत्त ले रहे हैं, अदत्त का उपभोग कर रहे हैं, अदत्त का अनुमोदन कर रहे हैं ? अदत्त का ग्रहण, उपभोग और अनुमोदन करने के कारण तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पाप-कर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पाप कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले यावत् एकान्त बाल भी हैं ?
२७७. उन अन्ययूथिकों ने भगवान स्थविरों से इस प्रकार कहा- आर्यो ! तुम्हें जो दिया जा रहा है वह अदत्त है, तुम्हारे द्वारा जो प्रतिगृह्यमाण है वह अप्रतिगृहीत है, जो निसृज्यमाण (पात्र में डाला जा रहा है वह अनिसृष्ट है। आर्यो ! जो द्रव्य दिया जा रहा है और वह पात्र में गिरा नहीं है, बीच में ही कोई पुरुष उस द्रव्य का अपहरण कर लेता है वह द्रव्य गृहपति का है, तुम्हारा नहीं है । इस हेतु से हम कह रहे हैं - तुम अदत्तं ले रहे हो, अदत्त का उपभोग कर रहे हो, अदत्त का अनुमोदन कर रहे हो। अदत्त का ग्रहण, उपभोग और अनुमोदन करने के कारण तुम असंयत यावत् एकान्त बाल भी हो।
२७८. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा- आर्यो ! हम अदत्त नहीं ले रहे हैं, अदत्त का उपभोग नहीं कर रहे हैं, अदत्त का अनुमोदन नहीं कर रहे हैं। आर्यो ! हम दत्त ले रहे हैं, दत्त का उपभोग कर रहे हैं, दत्त का अनुमोदन कर रहे हैं। दत्त का ग्रहण, उपभोग और अनुमोदन करने के कारण हम तीन योग और तीन करण से संयत, विरत, अतीत के पाप-कर्म का प्रतिहनन करनेवाले, भविष्य के पाप कर्म का प्रत्याख्यान करने वाले, कायिकी आदि क्रिया से मुक्त, संवृत और एकान्त पण्डित भी हैं ।
२७९. उन अन्ययूथिकों ने भगवान स्थविरों से इस प्रकार कहा- आर्यो ! कैसे तुम दत्त का ग्रहण कर रहे हो, दत्त का उपभोग कर रहे हो, दत्त का अनुमोदन कर रहे हो ? दत्त का ग्रहण, उपभोग और अनुमोदन करने के कारण तुम संयत यावत् एकान्त पण्डित हो ?
२८०. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा- आर्यो ! हमें जो दिया जा रहा है वह दत्त है, हमारे द्वारा जो प्रतिगृह्यमाण है, वह प्रतिगृहीत है, जो निसृज्यमाण है, वह निसृष्ट है। आर्यो ! हमें जो द्रव्य दिया जा रहा है और वह पात्र में गिरा नहीं है, बीच में ही
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