Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. ८ : सू. ३१९-३२७ गौतम! वेदनीय कर्म में ग्यारह परीषहों का समवतार होता है, जैसे-प्रारंभ से पांच यथाक्रम-(क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंश-मशक), चर्या, शय्या, वध, रोग, तृण-स्पर्श,
जल्ल-इन ग्यारह परीषहों का वेदनीय कर्म में समवतार होता है। ३२०. भंते! दर्शन-मोहनीय-कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है। ___ गौतम! दर्शन-मोहनीय-कर्म में एक दर्शन-परीषह का समवतार होता है। ३२१. भंते! चारित्र-मोहनीय-कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है? गौतम! चारित्र-मोहनीय-कर्म में सात परीषहों का समवतार होता है, जैसेअरति, अचेल, स्त्री, निषद्या, याचना, आक्रोश, सत्कार-पुरस्कार-चरित्र-मोहनीय कर्म में इन सात परीषहों का समवतार होता है। ३२२. भंते! अंतराय-कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है?
गौतम! अंतराय कर्म में एक अलाभ-परीषह का समवतार होता है। ३२३. भंते! सात प्रकार के कर्म का बंध करने वाले पुरुष के कितने परीषह प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! सात प्रकार के कर्म का बंध करने वाले पुरुष के बाईस परीषह प्रज्ञप्त हैं। वह वेदन बीस परीषहों का करता है जिस समय शीत-परीषह का वेदन करता है, उस समय उष्ण-परीषह का वेदन नहीं करता है। जिस समय उष्ण-परीषह का वेदन करता है, उस समय शीत-परीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय चर्या-परीषह का वेदन करता है, उस समय निषद्या-परीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय निषद्या-परीषह का वेदन करता है, उस
समय चर्या-परीषह का वेदन नहीं करता। ३२४. इसी प्रकार आठ प्रकार के कर्म का बंध करने वाले पुरुष के परीषह की वक्तव्यता। ३२५. भंते! छह प्रकार के कर्म का बंध करने वाले सराग छद्मस्थ के कितने परीषह प्रज्ञप्त हैं? गौतम ! छह प्रकार के कर्म का बंध करने वाले सराग छद्मस्थ के चौदह परीषह प्रज्ञप्त हैं। वह वेदन बारह परीषहों का करता है जिस समय शीत-परीषह का वेदन करता है, उस समय उष्ण-परीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय उष्ण-परीषह का वेदन करता है, उस समय शीत-परीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय चर्या-परीषह का वेदन करता है, उस समय शय्या-परीषह का वेदन नहीं करता, जिस समय शय्या-परीषह का वेदन करता है, उस समय चर्या-परीषह का वेदन नहीं करता। ३२६. भंते! एक प्रकार के कर्म का बंध करने वाले वीतराग छद्मस्थ के कितने परीषह प्रज्ञप्त
गौतम! छह प्रकार के कर्म का बंध करने वाले सराग छद्मस्थ की भांति व्यक्तव्यता । ३२७. भंते! एक प्रकार के कर्म का बंध करने वाले सयोगी भवस्थ केवली के कितने परीषह
प्रज्ञप्त हैं? गौतम ! एक प्रकार के कर्म का बंध करने वाले सयोगी भवस्थ केवली के ग्यारह परीषह प्रज्ञप्त
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