Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. ९ : सू. ३७२-३८०
गौतम ! मनुष्य-पचेन्द्रिय-औदारिक- शरीर-प्रयोग-बंध के तीन हेतु हैं - वीर्य-सयोग-सद्- द्रव्यता, प्रमाद तथा कर्म, योग- भव और आयुष्य सापेक्ष मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिक- शरीर प्रयोग नाम कर्म का उदय ।
३७३. भंते! औदारिक- शरीर प्रयोग-बंध क्या देश बंध है ? सर्व-बंध है ?
गौतम ! देश - बंध भी है, सर्व-बंध भी है ।
सर्व-बंध है ?
३७४. भंते! एकेन्द्रिय-औदारिक- शरीर प्रयोग-बंध क्या देश बंध है ? औदारिक- शरीर-प्रयोग-बंध की भांति वक्तव्यता, इसी प्रकार पृथ्वीकायिक यावत्३७५. भंते! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिक- शरीर प्रयोग-बंध क्या देश बंध है ? सर्व-बंध है ? गौतम ! देश -बंध भी है, सर्व-बंध भी I
३७६. भंते! औदारिक- शरीर-प्रयोग-बंध काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है ?
गौतम ! सर्व-बंध का कालमान एक समय । देश बंध का कालमान जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः एक-समय न्यून - तीन पल्योपम है ।
३७७. भंते! एकेन्द्रिय-औदारिक- शरीर-प्रयोग-बंध काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है ?
गौतम ! सर्व-बंध का कालमान एक समय । देश बंध का कालमान जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः एक-समय- न्यून - बाईस हजार वर्ष है।
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३७८. पृथ्वीकाय-एकेन्द्रिय-औदारिक- शरीर-प्रयोग-बंध की पृच्छा ।
गौतम ! सर्व-बंध का कालमान एक समय । देश बंध का कालमान जघन्यतः तीन समय-न्यून-क्षुल्लक-भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः एक समय- न्यून - बाईस हजार वर्ष है । इसी प्रकार सबके सर्व-बंध का कालमान एक समय । देश बंध का नियम यह है - जिनके वैक्रिय शरीर नहीं है, उनके जघन्यतः तीन-समय- न्यून - क्षुल्लक- भव-ग्रहण है, उत्कृष्टतः जो स्थिति निर्दिष्ट है, उसमें एक समय न्यून कर देना चाहिए ।
जिनके वैक्रिय-शरीर है, उनके देश -बंध का कालमान जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः जितनी स्थिति निर्दिष्ट है, उसमें एक समय- न्यून कर देना चाहिए यावत् मनुष्यों के देश -बंध का कालमान जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः एक समय न्यून- तीन - पल्योपम है । ३७९. भंते! औदारिक- शरीर के बंध का अंतर काल की अपेक्षा कितने काल का है ? गौतम ! औदारिक- शरीर के सर्व-बंध का अंतर जघन्यतः तीन समय- न्यून क्षुल्लक-भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः तैतीस सागरोपम एक समय - अधिक- पूर्व-कोटि | देश -बंध का अंतर जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः तीन समय-अधिक तैतीस सागरोपम है ।
३८०. एकेन्द्रिय-औदारिक- शरीर के बंध के अंतर की पृच्छा ।
गौतम ! एकेन्द्रिय-औदारिक- शरीर के सर्व बंध का अंतर जघन्यतः तीन-समय- न्यून - - क्षुल्लक - भव- ग्रहण, उत्कृष्टतः एक समय अधिक - बाईस हजार वर्ष है। देश- बंध का अंतर जघन्यतः एक-समय, उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त्त है।
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