Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. २ : सू. १९२-२०४
गौतम! ज्ञानी दो प्रकार का प्रज्ञप्त है। जैसे-१. सादि-अपर्यवसित २. सादि- सपर्यवसित। जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः कुछ-अधिक-छासठ-सागरोपम तक ज्ञानी के रूप में रहता है। १९३. भंते! आभिनिबोधिक-ज्ञानी आभिनिबोधिक-ज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता
गौतम! सादि-सपर्यवसित-ज्ञानी की भांति वक्तव्य है। १९४. इसी प्रकार श्रुत-ज्ञानी की वक्तव्यता। १९५. इसी प्रकार अवधि-ज्ञानी की वक्तव्यता, इतना विशेष है-उसकी जघन्य स्थिति एक
समय की है। १९६. भंते ! मनःपर्यव-ज्ञानी मनःपर्यव-ज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है?
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः देशोन-पूर्वकोटि। १९७. भंते! केवल-ज्ञानी केवल-ज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है?
गौतम! केवल-ज्ञानी सादि अपर्यवसित होता है। १९८. भंते! अज्ञानी, मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी की पृच्छा। गौतम! अज्ञानी, मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. अनादि-अपर्यवसित २. अनादि-सपर्यवसित ३. सादि-सपर्यवसित। जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्यतः अंतर्मुहर्त, उत्कृष्टतः अनंत काल-अनंत
अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी, क्षेत्र की दृष्टि से देशोन-अपार्द्ध-पुद्गलपरिवर्त। १९९. भंते! विभंग-ज्ञानी की पृच्छा।
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः देशोन-पूर्वकोटि-अधिक-तेतीस-सागरोपम। २००. भंते! आभिनिबोधिक-ज्ञानी कितने अंतराल के बाद पुनः आभिनिबोधिक-ज्ञानी बनता
गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः अनंत-काल यावत् क्षेत्र की दृष्टि से देशोन-अपार्द्ध-पुद्गलपरिवर्त। २०१. श्रुत-ज्ञानी, अवधि-ज्ञानी और मनःपर्यव-ज्ञानी आभिनिबोधिक-ज्ञानी की भांति वक्तव्य
२०२. भंते! केवल-ज्ञानी की पृच्छा।
गौतम! अंतराल नहीं होता। २०३. मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी की पृच्छा।
गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः कुछ-अधिक-छासठ-सागरोपम। २०४. विभंगज्ञानी की पृच्छा। गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः वनस्पतिकाल।
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