Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ८ : उ. २ : सू. १८०-१८६
भगवती सूत्र कषाय-मुक्त-जीवों के पांच ज्ञान की भजना है। वेद की अपेक्षा १८१. भंते! वेद-युक्त-जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? इन्द्रिय-युक्त-जीव की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार स्त्री-वेद, पुरुष-वेद और नपुंसक-वेद वाले जीवों की वक्तव्यता। वेद-मुक्त-जीव कषाय-मुक्त जीव की भांति वक्तव्य हैं। आहारक की अपेक्षा . १८२. भंते! आहारक-जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं?
कषाय-युक्त-जीव की भांति वक्तव्यता। इतना विशेष है-आहारक-जीवों के केवल-ज्ञान भी होता है। १८३. भंते! अनाहारक-जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? ___ अनाहारक-जीवों के मनःपर्यव-ज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। ज्ञान का विषय-पद १८४. भंते? आभिनिबोधिक-ज्ञान का विषय कितना प्रज्ञप्त है?
गौतम! आभिनिबोधिक-ज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का प्रज्ञप्त हैं, जैसे-द्रव्य की दृष्टि से, क्षेत्र की दृष्टि से, काल की दृष्टि से, भाव की दृष्टि से। द्रव्य की दृष्टि से आभिनिबोधिक-ज्ञानी आदेशतः सब द्रव्यों को जानता, देखता है। क्षेत्र की दृष्टि से आभिनिबोधिक-ज्ञानी आदेशतः सर्वक्षेत्र को जानता-देखता है। काल की दृष्टि से आभिनिबोधिक-ज्ञानी आदेशतः सर्वकाल को जानता-देखता है। भाव की दृष्टि से आभिनिबोधिक-ज्ञानी आदेशतः सब भावों को जानता-देखता है। १८५. भंते! श्रुत-ज्ञान का विषय कितना प्रज्ञप्त है? गौतम! श्रुत-ज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का प्रज्ञप्त हैं, जैसे-द्रव्य की दृष्टि से, क्षेत्र की दृष्टि से, काल की दृष्टि से, भाव की दृष्टि से। द्रव्य की दृष्टि से श्रुत-ज्ञानी उपयुक्त अवस्था में (ज्ञेय के प्रति दत्तचित होने पर) सब द्रव्यों को जानता-देखता है। क्षेत्र की दृष्टि से श्रुत-ज्ञानी उपयुक्त अवस्था में सर्वक्षेत्र को जानता-देखता है। काल की दृष्टि से श्रुत-ज्ञानी उपयुक्त अवस्था में सर्वकाल को जानता-देखता है। भाव की दृष्टि से श्रुत-ज्ञानी उपयुक्त अवस्था में सब भावों को जानता-देखता है। १८६. भंते! अवधि-ज्ञान का विषय कितना प्रज्ञप्त है? गौतम! अवधि-ज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का प्रज्ञप्त हैं, जैसे-द्रव्य की दृष्टि से, क्षेत्र की दृष्टि से, काल की दृष्टि से, भाव की दृष्टि से। द्रव्य की दृष्टि से अवधि-ज्ञानी जघन्यतः अनंत रूपी द्रव्यों को जानता-देखता है। उत्कृष्टतः
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