Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. २ : सू. ९५-१०२
यदि सौधर्म - कल्पोपग-वैमानिक -देव-कर्म- आशीविष है तो क्या पर्याप्त सौधर्म कल्पोपगवैमानिक -देव-कर्म- आशीविष है ? अथवा अपर्याप्त सौधर्म कल्पोपग-वैमानिक -देव-कर्म- आशीविष है ?
गौतम ! पर्याप्त सौधर्म कल्पोपग-वैमानिक -देव-कर्म- आशीविष नहीं है, अपर्याप्त-सौधर्म-कल्पोपग-वैमानिक-देव- कर्म - आशीविष है । इसी प्रकार यावत् पर्याप्त सहस्रार- कल्पोपग- वैमानिक -देव-कर्म-आशीविष नहीं है, अपर्याप्त सहस्रार - कल्पोपग-वैमानिक -देव-कर्म- आशीविष है।
छद्मस्थ-केवली -पद
९६. दस पदार्थों को छद्मस्थ सम्पूर्ण रूप से न जानता है, न देखता है, जैसे- १. धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ३. आकाशास्तिकाय ४. शरीर-मुक्त जीव ५. परमाणु- पुद्गल ६. शब्द ७. गंध ८. वायु ९. यह जिन होगा या नहीं १०. यह सभी दुःखों का अन्त करेगा या नहीं ।
उत्पन्न - ज्ञान - दर्शन के धारक, अर्हत्, जिन, केवली इनको सम्पूर्ण रूप से जानते-देखते हैं, जैसे—धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीर-मुक्त जीव, परमाणु-पुद्गल, शब्द, गन्ध, वायु, यह जिन होगा या नहीं, यह सभी दुःखों का अन्त करेगा या नहीं । ज्ञान-पद
९७. भन्ते ! ज्ञान कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! ज्ञान पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुत-ज्ञान, अवधि- ज्ञान, मनः पर्यव - ज्ञान, केवल - ज्ञान ।
९८. वह आभिनिबोधिक ज्ञान क्या है ?
आभिनिबोधिक ज्ञान चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा । इस प्रकार जैसे रायपसेणइयं (सू. ७४१-७४५) में ज्ञानों के भेद की वक्तव्यता है वैसे ही यहां वक्तव्य है यावत् वह केवल - ज्ञान है ।
९९. भन्ते ! अज्ञान कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम! तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-मति - अज्ञान, श्रुत-अज्ञान, विभंग - ज्ञान ।
१००. वह मति - अज्ञान क्या है ?
मति - अज्ञान चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा ।
१०१. वह अवग्रह क्या है ?
अवग्रह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- अर्थावग्रह और व्यञ्जनावग्रह । इस प्रकार जैसे आभिनिबोधिक ज्ञान की वक्तव्यता है वैसे ही मति अज्ञान की वक्तव्यता । इतना विशेष है कि इसमें एकार्थिक नामों का उल्लेख करणीय नहीं है यावत् यह पाठ नोइंद्रिय-धारणा तक वक्तव्य है । वह है धारणा । वह है मति - अज्ञान ।
१०२. वह श्रुत- अज्ञान क्या है ?
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