Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. १ : सू. ३५-३८ शरीर और इन्द्रिय की अपेक्षा-प्रयोग-परिणति-पद ३५. जो अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-, तैजस-, कर्म-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं वे स्पर्शनेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं। इसी प्रकार पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-, तैजस-, कर्म-शरीर-प्रयोग-परिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार बादर-अपर्याप्त-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-, तैजस-, कर्म-शरीर-प्रयोग-परिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार बादर-पर्याप्त-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-, तैजस-, कर्म-शरीर-प्रयोग-परिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार इस अभिलाप के अनुसार जिसके जितनी इन्द्रियां और शरीर हैं उसके वे सब वक्तव्य हैं यावत् जो पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय-तैजस-कर्म-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं वे
श्रोत्रेन्द्रिय-, चक्षुरिन्द्रिय- यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं। वर्ण-आदि की अपेक्षा प्रयोग-परिणति-पद ३६. जो अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं वे वर्ण से काल-वर्ण-परिणत भी हैं, नील-, लाल-, पीत- और शुक्ल-वर्ण परिणत भी हैं, गंध से सुगंध-परिणत भी हैं, दुर्गन्ध-परिणत भी हैं, रस से तिक्त-रस-परिणत भी हैं, कटुक-रस-परिणत भी हैं, कषाय-रस-परिणत भी हैं, अम्ल-रस-परिणत भी हैं, मधुर-रस-परिणत भी हैं, स्पर्श से कठोर-स्पर्श-परिणत भी हैं, मृदु-स्पर्श-परिणत भी हैं, गुरु-स्पर्श-परिणत भी हैं, लघु-स्पर्श-परिणत भी हैं, शीत-स्पर्श-परिणत भी हैं, उष्ण-स्पर्श-परिणत भी हैं, स्निग्ध-स्पर्श-परिणत भी हैं, रूक्ष-स्पर्श-परिणत भी हैं; संस्थान से परिमण्डल-संस्थान-परिणत भी हैं, वृत्त-, त्र्यस-, चतुरस्र-, आयत-संस्थान-परिणत भी हैं। इसी प्रकार पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार क्रमशः ज्ञातव्य है यावत् जो पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-देव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं वे वर्ण से काल-वर्ण-परिणत भी हैं यावत् आयत-संस्थान-परिणत भी हैं। शरीर और वर्ण-आदि की अपेक्षा प्रयोग-परिणति-पद ३७. जो अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-तैजस- और कर्म-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं वे वर्ण से काल-वर्ण-परिणत भी हैं यावत् आयत-संस्थान-परिणत भी हैं। इसी प्रकार पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-तैजस- और कर्म-शरीर-प्रयोग-परिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार यथाक्रम ज्ञातव्य हैं, जिसके जितने शरीर हैं वे वक्तव्य हैं यावत् जो पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय-, तैजस- और कर्म-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं वे वर्ण से काल-वर्ण-परिणत भी हैं
यावत् आयत-संस्थान-परिणत भी हैं। इन्द्रिय और वर्ण-आदि की अपेक्षा प्रयोग-परिणति-पद ३८. जो अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-स्पर्शनेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं वे वर्ण से
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