Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ७ : उ. ९ : सू. १६९-१७५
भगवती सूत्र निर्माण करता है? अथवा गन्तव्य-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का निर्माण करता है? अथवा इन दोनों से भिन्न किसी अन्य-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का निर्माण करता है? गौतम! वह मनुष्य-लोक में स्थित पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का निर्माण करता है, गन्तव्य-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर एक वर्ण और एक रूप का निर्माण नहीं करता, इन दोनों से भिन्न किसी अन्य-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर निर्माण नहीं करता। इस प्रकार-२. एकवर्ण और अनेक रूप का निर्माण ३. अनेक वर्ण और एक रूप का निर्माण
४. अनेक वर्ण और अनेक रूप का निर्माण यह चौभंगी है। १७०. भन्ते! क्या असंवृत अनगार बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण किए बिना कृष्ण-वर्ण वाले पुद्गल को नील-वर्ण वाले पुद्गल के रूप में परिणत करने में समर्थ है? अथवा नील-वर्ण वाले पुद्गल को कृष्ण-वर्ण वाले पुद्गल के रूप में परिणत करने में समर्थ है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। वह बहिर्वती पुद्गलों का ग्रहण कर वैसा करने में समर्थ है यावत्१७१. क्या असंवृत अनगार बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण किए बिना स्निग्ध-स्पर्श वाले पुद्गल
को रूक्ष-स्पर्श वाले पुद्गल के रूप में परिणत करने में समर्थ है? अथवा रूक्ष-स्पर्श वाले पुद्गल को स्निग्ध-स्पर्श वाले पुद्गल के रूप में परिणत करने में समर्थ है?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। वह बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर वैसा करने में समर्थ है। १७२. भन्ते! क्या वह मनुष्य-लोक में स्थित पुद्गलों का ग्रहण कर परिणत करता है? अथवा गन्तव्य-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर परिणत करता है? अथवा इन दोनों से भिन्न किसी अन्य-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर परिणत करता है? गौतम! वह मनुष्य-लोक में स्थित पुद्गलों का ग्रहण कर परिणत करता है, गन्तव्य-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर परिणत नहीं करता है, इन दोनों से भिन्न किसी अन्य-स्थानवर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर परिणत नहीं करता। महाशिला-कंटक-संग्राम-पद १७३. यह अर्हत् के द्वारा ज्ञात है, यह अर्हत् के द्वारा स्मृत है, यह अर्हत् के द्वारा विज्ञात है-महाशिला-कंटक-संग्राम। भदन्त! महाशिला-कंटक-संग्राम में कौन जीता ? कौन हारा? गौतम! वज्री (इन्द्र) और विदेहपुत्र (कूणिक) जीते। नौ मल्ल नौ लिच्छवी- काशी कौशल के अट्ठारह गणराज हारे। १७४. महाशिला-कंटक-संग्राम उपस्थित हो गया है यह जानकर राजा कोणिक ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुलाकर कहा-देवानुप्रियो! शीघ्र ही हस्तिराज उदाई को सज्ज करो, अश्व, गज, रथ और प्रवर योद्धा से युक्त चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध करो, सनद्ध कर शीघ्र ही मेरी इस आज्ञा का प्रत्यर्पण करो। १७५. कौटुम्बिक पुरुष कोणिक राजा के द्वारा इस प्रकार का निर्देश प्राप्त कर हृष्ट-तुष्ट और
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