Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ७: उ. १ : सू. १०-१५
अकर्म की गति का पद १०. भन्ते! क्या अकर्म के गति होती है?
हां, होती है। ११. भन्ते! अकर्म के गति कैसी होती है? गौतम! निस्संगता, निरञ्जनता, गति-परिणाम, बन्धन-छेदन, निरिन्धनता और पूर्व प्रयोग-इन
कारणों से अकर्म के गति होती है। १२. भन्ते! निस्संगता, निरञ्जनता और गति-परिणाम-इन कारणों से अकर्म के गति कैसे होती
जैसे कोई पुरुष सूखे, निश्छिद्र और निरुपहत तुम्बे का पहले परिकर्म करता है, फिर दर्भ और कुश से उसका वेष्टन करता है, वेष्टित कर आठ मिट्टी के लेपों से लीपता है, लीप कर धूप में रख देता है, प्रभूत शुष्क होने पर उसे अथाह, अतरणीय, पुरुष से अधिक परिमाण वाले जल में प्रक्षिप्त कर देता है। गौतम! क्या वह तुम्बा उन आठ मिट्टी के लेपों की गुरुता से, भारीपन से, अत्यन्त भारीपन से जल के तल तक पहुंचकर नीचे धरातल पर प्रतिष्ठित होता
हां, होता है। क्या वह तुम्बा मिट्टी के आठों लेपों के उतर जाने पर धरातल से ऊपर उठकर सलिल-तल पर प्रतिष्ठित होता है? हां, होता है। गौतम! इसी प्रकार निस्संगता, निरञ्जनता और गति-परिणाम-इन कारणों से अकर्म के गति होती है। १३. भन्ते! बन्धन का छेद होने से अकर्म के गति कैसे होती है? गौतम! जैसे कोई गोल चने की फली, मूंग की फली, उड़द की फली, शाल्मली की फली
और एरण्ड-फल धूप लगने पर सूख जाता है और उसके बीज प्रस्फुटित हो ऊपर की ओर उछल जाते हैं। गौतम! इसी प्रकार बन्धन का छेदन होने पर अकर्म के गति होती है। १४. भन्ते! निरिन्धन होने के कारण अकर्म के गति कैसे होती है?
गौतम ! जैसे इंधन से मुक्त धुएं की गति स्वभाव से ही किसी व्याघात के बिना ऊपर की ओर होती है। गौतम! इसी प्रकार निरिन्धन होने के कारण अकर्म के गति होती है। १५. भन्ते! पूर्व प्रयोग से अकर्म के गति कैसे होती है?
गौतम! जैसे कोई धनुष से छूटे हुए बाण की किसी व्याघात के बिना लक्ष्य की ओर गति होती है। गौतम! इसी प्रकार पूर्व प्रयोग से अकर्म के गति होती है। गौतम! इसी प्रकार निस्संगता, निरञ्जनता, गति-परिणाम, बन्धन-छेदन, निरिन्धनता और पूर्व प्रयोग-इन कारणों से अकर्म क गति होती है।
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