Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ७: उ. १ : सू. ३-१०
भगवती सूत्र
ऊर्ध्वमुख मृदंग के आकार वाले उस शाश्वत लोक में जीव को भी जानता है, देखता है; अजीव को भी जानता है, देखता है उसके पश्चात् वह सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होता है तथा सब दुःखों का अन्त करता है ।
श्रमणोपासक की क्रिया का पद
४. भन्ते ! जो श्रमणोपासक सामायिक की साधना में है और श्रमणों के उपाश्रय में बैठा हुआ है, उसके क्या ऐर्यापथिकी क्रिया होती है अथवा साम्परायिकी क्रिया होती है ?
गौतम ! ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं होती, साम्परायिकी क्रिया होती है।
५. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-श्रमणोपासक के ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं होती, साम्परायिकी क्रिया होती है ?
गौतम ! जो श्रमणोपासक सामायिक की साधना में है और श्रमणों के उपाश्रय में बैठा हुआ है, उसकी आत्मा अधिकरणी होती है; आत्मा अधिकरण है, इस कारण उसके ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं होती, साम्परायिकी क्रिया होती है । यह इस अपेक्षा से कहा जाता है।
६. भन्ते ! श्रमणोपासक के पहले ही त्रस - प्राण का समारम्भ (हिंसा) का प्रत्याख्यान किया हुआ, पृथ्वीकायिक- जीव के समारम्भ का प्रत्याख्यान किया हुआ नहीं हैं । वह पृथ्वीकाय का खनन करता हुआ किसी त्रस - प्राणी की हिंसा करे, भन्ते ! क्या ऐसा करता हुआ वह उस व्रत का अतिचरण करता है ?
यह अर्थ संगत नहीं है, क्योंकि वह उस त्रस - प्राणी के वध के संकल्प से प्रवृत्ति नहीं करता । ७. भन्ते ! श्रमणोपासक के पहले ही वनस्पति- जीवों के समारम्भ का प्रत्याख्यान किया हुआ है । वह पृथ्वी का खनन करता हुआ किसी वृक्ष की जड़ का काट दे, भन्ते ! क्या ऐसा करता हुआ वह उस व्रत का अतिचरण करता है ?
यह अर्थ संगत नहीं है। क्योंकि वह वनस्पति-जीव के वध के संकल्प से प्रवृत्ति नहीं करता । श्रमण- प्रतिलाभ से लाभ - पद
८. भन्ते ! श्रमणोपासक तथारूप श्रमण अथवा माहन को अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य से प्रतिलाभित करता हुआ क्या प्राप्त करता है? गौतम ! श्रमणोपासक तथारूप श्रमण अथवा माहन को अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य से प्रतिलाभित करता हुआ तथारूप श्रमण अथवा माहन के समाधि उत्पन्न करता है । समाधि देने वाला व्यक्ति उसी समाधि को प्राप्त करता है ।
९. भन्ते ! श्रमणोपासक तथारूप श्रमण अथवा माहन को अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य से प्रतिलाभित करता हुआ क्या देता है ?
गौतम ! वह जीवन देता है, दुस्त्यज को त्यागता है, दुष्कर करता है, दुर्लभ को पाता है, बोधि का अनुभव करता है, उसके पश्चात् सिद्ध हो जाता है यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ।
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