Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
४५. चतुरिन्द्रिय-जीवों तक इसी प्रकार वक्तव्य 1
४६. पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों की पृच्छा ।
गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीव सर्व-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी नहीं है, देश-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं ।
श. ७: उ. २ : सू. ४५-५४
४७. भन्ते ! मनुष्य क्या सर्व मूल-गुण- प्रत्याख्यानी हैं, देश-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी हैं ? अप्रत्याख्यानी हैं ?
गौतम ! मनुष्य सर्व-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी भी हैं, देश-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं ।
४८. वानमंतर-, ज्योतिष्क- और वैमानिक- देव नैरयिक- जीवों की भांति वक्तव्य हैं ।
४९. भन्ते ! इन सर्व-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी, देश-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किनसे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
गौतम! सर्व-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी जीव सबसे अल्प हैं, देश-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी उनसे असंख्येय-गुणा अधिक हैं, अप्रत्याख्यानी उनसे अनन्त गुणा अधिक हैं ।
५०. भंते! इन पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक-जीवों की पृच्छा ।
गौतम ! देश -मूल-गुण- प्रत्याख्यानी पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक - जीव सबसे अप्रत्याख्यानी उनसे असंख्येय-गुणा अधिक हैं ।
अल्प हैं,
५१. भन्ते ! इन सर्व-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी मनुष्यों की पृच्छा ।
गौतम ! सर्व-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे अल्प हैं, देश-मूल-गुण- प्रत्याख्यानी मनुष्य उनसे असंख्येय-गुणा अधिक हैं, अप्रत्याख्यानी मनुष्य उनसे असंख्येय-गुणा अधिक हैं । ५२. भन्ते ! जीव क्या सर्वोत्तर - गुण- प्रत्याख्यानी हैं ? अप्रत्याख्यानी हैं ?
देशोत्तर - गुण- प्रत्याख्यानी हैं,
गौतम ! जीव सर्वोत्तर - गुण- प्रत्याख्यानी भी हैं, देशोत्तर - गुण- प्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं ।
पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीव और मनुष्य इसी प्रकार वक्तव्य हैं । वैमानिक - देवों तक शेष सभी जीव अप्रत्याख्यानी हैं।
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५३. भंते! इन सर्वोत्तर-गुण- प्रत्याख्यानी, देशोत्तर - गुण - प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किनसे अल्प, अधिक, तुल्य विशेषाधिक हैं ? प्रथम दण्डक की भांति तीनों हैं । (सू. ४०-४२) यावत् मनुष्यों तक वक्तव्य हैं।
५४. भन्ते ! जीव क्या संयत हैं? असंयत हैं ? संयतासंयत हैं ?
गौतम ! जीव संयत भी हैं, असंयत भी हैं, संयतासंयत भी हैं। इस प्रकार वैमानिक जीवों तक पण्णवणा (पद ३२) की भांति वक्तव्य हैं। तीनों का अल्प - बहुत्व भी प्रथम दण्डक (सूत्र ४०-४२) की भांति वक्तव्य है ।