Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ७ : उ. ६ : सू. १०४-११३
भगवती सूत्र होता है। उपपन्न होता हुआ स्यात् महा-वेदना वाला होता है, स्यात् अल्प-वेदना वाला होता है, उपपन्न होने के पश्चात् एकान्त सुखद वेदना का वेदन करता है और कदाचित् असात
वेदना का वेदन करता है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों के लिए यही नियम है। १०५. भन्ते! जो भविक जीव पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाला है, पृच्छा।
गौतम! वह यहां रहता हुआ स्यात् महा-वेदना वाला होता है, स्यात् अल्प-वेदना वाला होता है। इसी प्रकार उत्पन्न होता हुआ भी स्यात् महा-वेदना वाला होता है, स्यात् अल्प-वेदना होता वाला है, उत्पन्न होने के पश्चात् विभिन्न मात्रा वाली वेदना का वेदन करता है। इसी प्रकार यावत् मनुष्यों के लिए यही नियम है। व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में
असुरकुमार के समान वक्तव्यता। १०६. भन्ते! क्या जीव ज्ञात अवस्था में आयुष्य का बंध करते हैं? अथवा अज्ञात अवस्था में
आयुष्य का बंध करते हैं। गौतम! जीव ज्ञात अवस्था में आयुष्य का बंध नहीं करते, अज्ञात अवस्था में आयुष्य का बंध करते हैं। इसी प्रकार नैरयिक यावत् वैमानिक की क्तव्यता। कर्कश-अकर्कश-वेदनीय-पद १०७. भन्ते! क्या जीवों के कर्कश-वेदनीय कर्म होते हैं?
हां, होते हैं। १०८. भन्ते! जीवों के कर्कश-वेदनीय कर्म किस कारण से होते हैं?
गौतम! प्राणातिपात यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य से होते हैं। गौतम! इस प्रकार जीवों के कर्कश-वेदनीय कर्म होते हैं। १०९. भन्ते! क्या नैरयिकों के कर्कश-वेदनीय कर्म होते हैं?
हां, होते हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के कर्कश-वेदनीय कर्म होते हैं। ११०. भन्ते! क्या जीवों के अकर्कश-वेदनीय कर्म होते हैं?
हां, होते हैं। १११. भन्ते! जीवों के अकर्कश-वेदनीय कर्म किस कारण से होते हैं?
गौतम! प्राणातिपात-विरमण यावत् परिग्रह-विरमण और क्रोध-विवेक यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य-विवेक से होते हैं। गौतम! इस प्रकार जीवों के अकर्कश-वेदनीय कर्म होते हैं। ११२. भन्ते! क्या नैरयिकों के अकर्कश-वेदनीय कर्म होते हैं?
यह अर्थ संगत नहीं है। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के लिए यही नियम है। विशेष यह है-मनुष्यों की वक्तव्यता जीवों के समान है। सातासात-वेदनीय-पद ११३. भन्ते! क्या जीवों के सात-वेदनीय-कर्म होते हैं? हां, होते हैं।
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