Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ६ : उ. १० : सू. १८६-१८९
भगवती सूत्र अवगाढ़ पुद्गलों को आत्मा से ग्रहण कर आहार नहीं करते।
नैरयिक जीवों की भांति वैमानिक तक सभी दण्डक वक्तव्य हैं। केवली के ज्ञान का पद १८७. भन्ते! क्या केवली इन्द्रियों से जानता-देखता है?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। १८८. यह किस अपेक्षा से?
गौतम! केवली पूर्व दिशा में परिमित को भी जानता है, अपरिमित को भी जानता है, यावत् केवली का दर्शन निरावरण है, इस अपेक्षा से। संग्रहणी गाथा जीव का सुख और दुःख, जीव और जीना, भवसिद्धिक, एकान्त दुःखमय वेदना, आत्मा से आहार ग्रहण कर विषय और केवली का जानना-देखना- दसवें उद्देशक में प्रतिपादित विषय
१८९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
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