Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ६ : उ. १० : सू. १७१-१७८
भगवती सूत्र
जितने जीव हैं, इतने जीवों क सुख अथवा दुःख को यावत् बेर की गुठली जितना भी, सेम जितना भी, मटर जितना भी, उड़द जितना भी, मूंग जितना भी, जूं जितना भी और लीख जितना भी निष्पन्न करके दिखाने में कोई भी समर्थ नहीं है। १७२. भन्ते! इस प्रकार का वक्तव्य कैसे है? गौतम वे अन्ययूथिक जो ऐसा आख्यान करते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं, वे मिथ्या कहते हैं । गौतम! मैं इस प्रकार आख्यान करता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूं-सर्व लोक के सब जीवों के सुख अथवा दुःख को यावत् बेर की गुठली जितना भी, सेम जितना भी, मटर जितना भी, मूंग जितना भी जूं जितना भी और लीख जितना भी निष्पन्न करके दिखाने में कोई भी समर्थ नहीं है। १७३. यह किस अपेक्षा से?
गौतम! यह जम्बूद्वीप द्वीप एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा यावत् उसका परिक्षेप तीन-लाखसोलह-हजार-दो-सौ-सत्ताईस-योजन-तीन-कोस-एक-सौ-अट्ठाईस-धनुष-और-साढा-तेरह
अंगुल-से-कुछ-अधिक प्रज्ञप्त है। महान् ऋद्धि वाला यावत् कोई महान् सामर्थ्य वाला देव विलेपन-सहित पिटक को ले कर उसे खोलता है, खोल कर यावत् यह रहा, यह रहा, इस प्रकार कह कर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप में तीन बार चुटकी बजाने जितने समय में इक्कीस बार घूम कर शीघ्र ही आ जाता है। गौतम! क्या वह सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप उन नासिका-ग्राह्य पुद्गलों से स्पृष्ट हुआ? हां, स्पृष्ट हुआ। गौतम! उन नासिका-ग्राह्य पुद्गलों को बेर की गुठली जितना भी, सेम जितना भी, मटर जितना भी, उड़द जितना भी, मूंग जितना भी, जूं जितना भी और लीख जितना भी निष्पन्न कर क्या कोई दिखाने में समर्थ हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। गौतम! इसीलिए यह कहा जा रहा है जीव के सुख अथवा दुःख को यावत् दिखाने में कोई भी समर्थ नहीं है। जीव-चेतना-पद १७४. भन्ते! क्या जीव जीव (चैतन्य) है? भन्ते! क्या जीव (चैतन्य) जीव है?
गौतम! जीव नियमतः जीव (चैतन्य) है। जीव (चैतन्य) भी नियमतः जीव है। १७५. भन्ते! क्या जीव नैरयिक है? क्या नैरयिक जीव है? __ गौतम! नैरयिक नियमतः जीव है, जीव स्यात् नैरयिक है, स्यात् नैरयिक नहीं है। १७६. भन्ते! क्या जीव असुरकुमार है? क्या असुरकुमार जीव है?
गौतम! असुरकुमार नियमतः जीव है। जीव स्यात् असुरकुमार है, स्यात् असुर-कुमार नहीं
१७७. इस प्रकार वैमानिक-देवों तक सभी दण्डक वक्तव्य हैं। १७८.भन्ते! क्या जो जीता है, वह जीव है? अथवा जो जीव है वह जीता है?
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