Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श.६ : उ. ३ : सू. २६-३२
भगवती सूत्र द्विविध प्रयोग के आधार पर विकलेन्द्रिय-जीवों के कर्मों का उपचय प्रयोग से होता है, स्वभाव से नहीं होता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीवों के कर्मों का उपचय प्रयोग से होता है, स्वभाव से नहीं होता। इस प्रकार यावत् वैमानिक-देवों तक जिसके जो प्रयोग है उससे कर्मों का उपचय वक्तव्य है। कर्मोपचय का सादि-अनादि-पद। २७. भन्ते! वस्त्र के पुद्गलों का उपचय सादि-सपर्यवसित है? सादि-अपर्यवसित है? अनादि-सपर्यवसित है? अनादि-अपर्यवसित है? गौतम! वस्त्र के पुद्गलों का उपचय सादि-सपर्यवसित है, सादि-अपर्यवसित नहीं है, अनादि-सपर्यवसित नहीं है, अनादि-अपर्यवसित नहीं है। २८. भन्ते! जैसे वस्त्र के पुद्गलों का उपचय सादि-सपर्यवसित है, सादि-अपर्यवसित नहीं है,
अनादि-सपर्यवसित नहीं है, अनादि-अपर्यवसित नहीं है, उसी प्रकार जीवों के कर्मोपचय के संबंध में प्रश्न है। गौतम! कुछ जीवों के कर्मों का उपचय सादि-सपर्यवसित है, कुछ जीवों के कर्मों का उपचय अनादि-सपर्यवसित है, कुछ जीवों के कमों का उपचय अनादि-अपर्यवसित है, पर जीवों के कर्मों का उपचय सादि-अपर्यवसित नहीं होता। २९. यह किस अपेक्षा से?
गौतम! ईर्यापथिक-कर्म बांधने वाले कर्मों का उपचय सादि-सपर्यवसित है, भवसिद्धिक-जीवों के कर्मों का उपचय अनादि-सपर्यवसित है, अभवसिद्धिक-जीवों के कर्मों का उपचय
अनादि-अपर्यवसित है। इस अपेक्षा से। ३०. भन्ते! क्या वस्त्र सादि-सपर्यवसित है? सादि-अपर्यवसित ? अनादि-सपर्यवसित है?
अथवा अनादि-अपर्यवसित है? गौतम! वस्त्र सादि-सपर्यवसित है। शेष तीनों भंग (विकल्प) प्रतिषेधनीय है-सादि-अपर्यवसित नहीं है, अनादि-सपर्यवसित नहीं है और अनादि-अपर्यवसित नहीं है। ३१. भन्ते! जैसे वस्त्र सादि-सपर्यवसित है, सादि अपर्यवसित नहीं है, अनादि-अपर्यवसित नहीं है और अनादि-सपर्यवसित नहीं है, वैसे ही क्या जीव भी सादि-सपर्यवसित हैं? सादि-अपर्यवसित हैं? अनादि-सपर्यवसित हैं? अथवा अनादि-अपर्यवसित हैं? गौतम ! कुछ जीव सादि-सपर्यवसित हैं। कुछ जीव सादि-अपर्यवसित हैं। कुछ जीव अनादि-सपर्यवसित हैं। कुछ जीव अनादि-अपर्यवसित हैं। ३२. यह किस अपेक्षा से?
गौतम! नैरयिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य और देव गति-आगति अपेक्षा सादि-सपर्यवसित हैं। सिद्ध-गति की अपेक्षा सादि-अपर्यवसित हैं। भवसिद्धिक-जीव भव्यत्व-लब्धि की अपेक्षा अनादि-सपर्यवसित हैं, अभवसिद्धिक-जीव संसार (जन्म-मरण) की अपेक्षा अनादि-अपर्यवसित हैं। इस अपेक्षा स।
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