Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ६ : उ. ३ : सू. ४१-४७
गौतम ! प्रथम तीनों चक्षु-दर्शनी, अचक्षु - दर्शनी और अवधि-दर्शनी ज्ञानावरणीय-कर्म का बंध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। केवल - दर्शनी बन्ध नहीं करता । इसी प्रकार वेदनीय- कर्म को छोड़ कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बन्ध की वक्तव्यता । प्रथम तीनों वेदनीय कर्म का बन्ध करते हैं। केवल दर्शनी स्यात् बन्ध करता है, स्यात् नहीं करता ।
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४२. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या पर्याप्तक करता है? अपर्याप्तक करता है ? नोपर्याप्तक-नो अपर्याप्तक करता है ?
गौतम ! पर्याप्तक ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता । अपर्याप्तक करता है। नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक नहीं करता ।
इसी प्रकार आयुष्य-कर्म को छोड़ कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता । आयुष्य-कर्म का बन्ध प्रथम दोनों - पर्याप्तक और अपर्याप्तक स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते । नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक नहीं करता ।
४३. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या भाषक (भाषा - पर्याप्ति-सम्पन्न) करता है ? अभाषक करता है ?
गौतम ! दोनों ही स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। इसी प्रकार वेदनीय-कर्म को छोड़ कर सात कर्म-प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता । वेदनीय कर्म का बन्ध भाषक करता है। अभाषक स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता ।
४४. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या परीत करता है ? अपरीत करता है ? नोपरीत- नोअपरीत करता है ?
गौतम ! परीत ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता । अपरीत करता है । नोपरीत - नोअपरीत नहीं करता ।
इसी प्रकार आयुष्य-कर्म को छोड़ कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बन्ध की वक्तव्यता। आयुष्य-कर्म का बंध परीत और अपरीत दोनों स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। नोपरीत- नोअपरीत नहीं करता ।
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४५. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या आभिनिबोधिक ज्ञानी करता है ? श्रुत - ज्ञानी करता है ? अवधि - ज्ञानी करता है ? मनः पर्यव - ज्ञानी करता है? केवल ज्ञानी करता है ?
गौतम ! प्रथम चारों आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुत-ज्ञानी, अवधि - ज्ञानी और मनः पर्यवज्ञानी स्यात् ज्ञानावरणीय-कर्म का बन्ध करते हैं, स्यात् नहीं करते। केवल - ज्ञानी बंध नहीं करता। इसी प्रकार वेदनीय कर्म को छोड़ कर सातों ही कर्म - प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता । वेदनीय-कर्म का बन्ध प्रथम चारों करते हैं। केवल - ज्ञानी स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता । ४६. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या मति अज्ञानी करता है ? श्रुत- अज्ञानी करता है ? विभंग - ज्ञानी करता है ?
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गौतम ! आयुष्य-कर्म को छोड़ कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों का बन्ध वे करते हैं, आयुष्य-कर्म का बंध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते ।
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