Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ६ : उ. ७,८ : सू. १३४-१४२
भगवती सूत्र -न्यून-एक-सागरोपम-कोटिकोटि है। ४. सुषम-दुःषमा का कालमान दो-सागरोपम-कोटिकोटि है। ५. सषमा का कालमान तीन-सागरोपम-कोटिकोटि है। ६. सुषम-सुषमा का कालमान चार-सागरोपम-कोटिकोटि है। अवसर्पिणी का कालमान दस-सागरोपम-कोटिकोटि है। उत्सर्पिणी का कालमान दस-सागरोपम-कोटिकोटि है। अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी दोनों का समन्वित कालमान बीस-सागरोपम-कोटिकोटि है। सुषम-सुषमा में भरतवर्ष-पद १३५. भन्ते! जम्बूद्वीप द्वीप में इस अवसर्पिणी के सुषम-सुषमा काल की प्रकृष्ट अवस्था में भरतवर्ष के आकार और भाव का अवतरण कैसा था? गौतम! उस समय का भूमिभाग समतल और रमणीय था जैसे मुरज (वाद्य) का मुखपुट। इस प्रकार उत्तरकुरु क्षेत्र की वक्तव्यता ज्ञातव्य है यावत् भरतवर्ष में रहने वाले अनेक भारतीय मनुष्य और स्त्रियां उस भूमिभाग पर आश्रय लेती हैं, सोती हैं, ठहरती हैं, बैठती हैं, करवट लेती हैं, हंसती है, क्रीडा करती हैं, खेलती हैं। उस समय भरतवर्ष के खण्ड-खण्ड, प्रदेश-प्रदेश और इधर-उधर अनेक उद्दाल, कोदाल यावत् दर्भ और बल्वज आदि तृणों से रहित मूल वाले वृक्ष हैं यावत् छह जाति के मनुष्यों की परम्परा चल रही थी, जैसे-पद्मगन्ध,
मृगगन्ध, अमम, तेतली, सह, शनैश्चारी। १३६. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
आठवां उद्देशक
पृथ्वी-आदि में गेह-आदि की पृच्छा का पद १३७. भन्ते! पृथ्वियां कितनी प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! आठ पृथ्वियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे–रत्नप्रभा यावत् ईषत्-प्रागभारा। १३८. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के नीचे घर हैं? घर की आपण हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। १३९. भन्ते! इस रत्नप्रभा (पृथ्वी) के नीचे क्या गांव हैं यावत् सन्निवेश हैं?
यह अर्थ संगत नहीं है। १४०. भन्ते! इन रत्नप्रभा-पृथ्वी के नीचे क्या बड़े मेघ संस्विन्न होते हैं? सम्मूर्च्छित होते हैं? बरसते हैं? हां, ऐसा होता है। यह क्रिया तीनों ही करते हैं-देव भी करता है, असुर भी करता है, नाग भी करता है। १४१. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी में क्या बादर (स्थूल) गर्जन का शब्द है? हां, है। यह क्रिया तीनों ही करते हैं।
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