Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
लवणादि समुद्र - पद
१५५. भन्ते! क्या लवणसमुद्र ऊंचे जलस्तर वाला है? सम जलस्तर वाला है? क्षुब्ध जल वाला है? अक्षुब्ध जल वाला है?
श. ६ : उ. ८,९ : सू. १५५-१६१
गौतम! लवणसमुद्र ऊंचे जलस्तर वाला है, सम जलस्तर वाला नहीं है, क्षुब्ध जल वाला है, अक्षुब्ध जल वाला नहीं है ।
१५६. भन्ते ! जिस प्रकार लवणसमुद्र ऊंचे जलस्तर वाला है, सम जलस्तर वाला नहीं है, क्षुब्ध जल वाला है, अक्षुब्ध जल वाला नहीं है । उसी प्रकार अढ़ाई द्वीप से बहिर्वर्ती समुद्र क्या ऊंचे जलस्तर वाले हैं? सम जलस्तर वाले हैं, क्षुब्ध जल वाले हैं ? अक्षुब्ध जल वाले हैं ?
गौतम ! अढ़ाई द्वीप से बहिर्वर्ती समुद्र ऊंचे जलस्तर वाले नहीं हैं, सम जलस्तर वाले हैं, क्षुब्ध जल वाले नहीं हैं, अक्षुब्ध जल वाले हैं। वे जल से भरे हुए, परिपूर्ण, छलकते हुए, हिलोरे लेते हुए, चारों ओर से जलजलाकर हो रहे हैं ।
१५७. भन्ते! लवणसमुद्र में क्या अनेक बड़े मेघ संस्विन्न होते हैं ? सम्मूर्च्छित होते हैं ? बरसते हैं ?
हां, ऐसा होता है ।
१५८. भन्ते! जिस प्रकार लवणसमुद्र में अनेक बड़े मेघ संस्विन्न होते हैं, सम्मूर्च्छित होते हैं, बरसते हैं, उसी प्रकार अढ़ाई द्वीप से बहिर्वर्ती समुद्रों में भी अनेक बड़े मेघ संस्विन्न होते हैं ? सम्मूर्च्छित होते हैं ? बरसते हैं ?
१५९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-अढ़ाई द्वीप से बहिर्वर्ती समुद्र पूर्ण हैं यात् चारों ओर से जलजलाकार हो रहे हैं ?
गौतम! अढ़ाई द्वीप से बहिर्वर्ती समुद्रों में अनेक उदकयोनिक जीव और पुद्गल उदक-रूप में उत्पन्न होते हैं और विनष्ट होते हैं, च्युत होते हैं और उत्पन्न होते हैं । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है—अढ़ाई द्वीप से बहिर्वर्ती समुद्र जल से भरे हुए परिपूर्ण, छलकते हुए, हिलोरे लेते हुए, चारों ओर जलजलाकार हो रहे हैं । उनका संस्थानगत स्वरूप एक प्रकार - चक्रवाल के आकार का है । विस्तार की दृष्टि से वे अनेक प्रकार के हैं। वे क्रमशः पूर्ववर्ती से उत्तरवर्ती द्विगुण-द्विगुण हैं । यावत् इस तिरछे-लोक में असंख्येय द्वीप तथा स्वयम्भूरमण अवसान वाले समुद्र प्रज्ञप्त हैं, आयुष्मन् श्रमण !
१६०. भन्ते! कितने द्वीप और समुद्र नामों से प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! लोक में जितने शुभ नाम, शुभ रूप, शुभ गन्ध, शुभ रस और शुभ स्पर्श हैं उतने द्वीप और समुद्र नामों से प्रज्ञप्त हैं । इस प्रकार शुभ नाम, उद्धार, परिणाम और द्वीप समुद्रों में सब जीवों का उत्पाद ज्ञातव्य है ।
१६१. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
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