Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ६ : उ. ७ : सू. १३४ अनन्त व्यावहारिक परमाणु-पुद्गलां के समुदय, समिति और समागम से एक उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, (परिपाटी के अनुसार) श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, ऊध्वरेणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लिक्षा, यूका, यवमध्य और अंगुल होता है। आठ उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका की एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका का एक ऊध्वरेणु, आठ ऊध्वरेणु का एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणु का एक रथरेणु, आठ रथरेणु का देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों का एक बालाग्र, देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों के आठ बालाग्र हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष के मनुष्यों का एक बालाग्र, हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष के मनुष्यों के आठ बालाग्र का हैमवत और हैरण्यवत के मनुष्यों का एक बालाग्र, हैमवत और हैरण्यवत के मनुष्यों के आठ बालाग्र का पूर्व विदेह (और अपर विदेह) के मनुष्यों का एक बालाग्र, पूर्व-विदेह और अपर-विदेह के मनुष्यों का आठ बालाग्र की एक लिक्षा, आठ लिक्षा की एक यूका, आठ यूका का एक यवमध्य और आठ यवमध्य का एक अंगुल होता है। इस अंगुल-प्रमाण से छह अंगुल का पाद, बारह अंगुल की वितस्ति, चौबीस अंगुल की रत्नि, अड़तालीस अंगुल की कुक्षि, छियानवे अंगुल का एक दंड, धनुष, यूप, नालिका, अक्ष अथवा मुसल होता है। इस धनुष-प्रमाण से दो हजार धनुष का एक गव्यूत (कोश) और चार गव्यूत का एक योजन होता है। इस योजन-प्रमाण से कोई कोठा एक योजन लम्बा, चौड़ा, ऊंचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है। वहगाथाएक, दो, तीन यावत् उत्कर्षतः सात रात के बढ़े हुए करोड़ों बालानों में लूंस-ठूस कर घनीभूत कर भरा हुआ है। वे बालाग्र न अग्नि से जलते हैं, न हवा से उड़ते हैं, न असार होते हैं, न विध्वस्त होते हैं और न दुर्गन्ध को प्राप्त होते हैं। उस कोठे से सौ-सौ वर्ष के बीत जाने पर एक-एक बालाग्र को निकालने से जितने समय में वह कोठा खाली, रज-रहित, निर्मल ओर निष्ठित होता है, निर्लेप होता है, सब बालानों के निकल जाने पर विशुद्ध (सर्वथा खाली) हो जाता है, वह (व्यावहारिक) पल्योपम है। गाथाइन दस कोटिकोटि पल्यों से एक (व्यावहारिक) सागरोपम होता है। इस सागरोपम प्रमाण से-१. सुषम-सुषमा का कालमान चार-सागरोपम-कोटिकोटि है। २. सुषमा का कालमान तीन सागरोपम-कोटिकोटि है। ३. सुषम-दुःषमा का कालमान दो-सागरोपम-कोटिकोटि है। ४. दुःषम-सुषमा का कालमान बयालीस-हजार-वर्ष-न्यून-एक-सागरोपम-कोटिकोटि है। ५. दुःषमा का कालमान इक्कीस-हजार-वर्ष है। ६. दुःषमा-दुःषमा का कालमान इक्कीस-हजार-वर्ष हैं। पुनः उत्सर्पिणी में-१. दुःषमा-दुःषमा का कालमान इक्कीस-हजार-वर्ष हैं। २. दुःषमा का कालमान इक्कीस-हजार-वर्ष ह। ३. दुःषम-सुषमा का कालमान बयालीस-हजार-वर्ष
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