Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
कर्म-प्रकृति-बंध-विवेचन - पद
३३. भन्ते! कर्म-प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ?
श. ६ : उ. ३ : सू. ३३-३६
गौतम! आठ कर्म प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र, अन्तराय ।
३४. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म की बंध- स्थिति कितने काल की प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कर्षतः तीस कोटाकोटि सागरोपम है। इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म-स्थिति कर्म-निषेक (कर्म-दलिकों के अनुभव के लिए होने वाली विशिष्ट प्रकार की रचना) का काल है ।
दर्शनावरणीय कर्म की बंध- स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त उत्कर्षतः तीस कोटाकोटि सागरोपम है। इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म-स्थिति कर्म- निषेक का काल है ।
वेदनीय कर्म की बन्ध-स्थिति जघन्यतः दो समय उत्कर्षतः तीस कोटाकोटि सागरोपम है । इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म-स्थिति कर्म- निषेक का काल है ।
मोहनीय कर्म की बंध- स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कर्षतः सत्तर कोटाकोटि सागरोपम है। इसका अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म-स्थिति कर्म- निषेक का काल है ।
आयुष्य-कर्म की बंध स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कर्षतः कोटिपूर्व का एक तिहाई भाग अधिक तेतीस सागरोपम है । कर्मस्थिति घटाव पूर्वकोटि का तीसरा भाग (यानि तेतीस सागर) कर्म-निषेक का काल है।
नाम-कर्म और गोत्र - कर्म की बंध- स्थिति जघन्यतः आठ मुहूर्त्त, उत्कर्षतः कोटाकोटि सागरोपम है । उनका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म- स्थिति कर्म-निषेक का काल है ।
अन्तराय-कर्म की बंध- स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कर्षतः तीस कोटाकोटि सागरोपम है । इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म-स्थिति कर्म- निषेक का काल है ।
३५. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या स्त्री करती है ? पुरुष करता है ? नपुंसक करता है, नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक करता है ?
गौतम ! स्त्री भी ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करती है, पुरुष करता है, नपुंसक भी करता है; नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक स्यात् बंध करता है, स्यात् बंध नहीं करता ।
इस प्रकार आयुष्य-कर्म को छोड़कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता करें । ३६. भन्ते ! आयुष्य-कर्म का बंध क्या स्त्री करती है ? पुरुष करता है ? नपुंसक करता है ? नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक करता है ?
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