Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ६ : उ. ३ : सू. ४७-५३
४७. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या मन-योगी करता है ? वचन - योगी करता है ? काय - योगी करता है ? अयोगी करता है ?
गौतम ! प्रथम तीनों स्यात् ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करते हैं, स्यात् नहीं करते। अयोगी नहीं
करता ।
इसी प्रकार वेदनीय-कर्म को छोड़ कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता । वेदनीय कर्म का बन्ध प्रथम तीनों करते हैं, अयोगी नहीं करता ।
४८. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या साकार - उपयोग वाला करता है ? अनाकारउपयोग वाला करता है ?
गौतम! आठों ही कर्म-प्रकृतियों का बन्ध वे स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते ।
४९. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या आहारक करता है ? अनाहारक करता है ?
गौतम ! दोनों स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। इसी प्रकार वेदनीयकर्म और आयुष्य-कर्म को छोड़ कर छह कर्म- प्रकृतियों के बन्ध की व्यक्तव्यता । वेदनीय कर्म का बन्ध आहारक करता है। अनाहारक स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। आयुष्य कर्म का बध आहारक स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। अनाहारक नहीं करता ।
५०. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या सूक्ष्म करता है? बादर करता है ? नोसूक्ष्म-नोबादर करता है ?
गौतम ! सूक्ष्म बन्ध करता है। बादर स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता । नोसूक्ष्म - नोबादर नहीं
करता ।
इसी प्रकार आयुष्य-कर्म को छोड़कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता । आयुष्य-कर्म का बंध सूक्ष्म और बादर स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। नोसूक्ष्म-नोबादर नहीं करता ।
५१. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या चरम करता है ? अचरम करता है ? गौतम! आठों ही कर्म-प्रकृतियों का बन्ध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता ।
वेदक - अवेदक जीवों का अल्पबहुत्व-पद
५२. भन्ते ! स्त्री-वेदक, पुरुष - वेदक, नपुंसक वेदक और अवेदक जीवों बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
गौतम ! पुरुष-वेदक सबसे अल्प हैं, स्त्री-वेदक उनसे संख्येयगुना हैं, अवेदक उससे अनन्त - गुना हैं, नपुंसक वेदक उनसे अनन्त-गुना हैं ।
कौन किनसे अल्प,
इन सब पदों (संयत आदि) का अल्पबहुत्व उच्चारणीय है यावत् अचरम जीव सबसे अल्प हैं, चरम उनसे अनन्त - गुना हैं ।
५३. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
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