Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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छठा शतक
पहला उद्देशक संग्रहणी गाथा वेदना, आहार, महाश्रव, सप्रदेश, तमस्काय, भव्य, शालि, पृथ्वी, कर्म और अन्ययूथिक
छठे शतक के दस उद्देशकों के ये प्रतिपाद्य हैं। प्रशस्त निर्जरा का श्रेयस्त्व-पद १. भन्ते! क्या जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है? क्या जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है? महावेदना वाले और अल्पवेदना वाले में क्या वह श्रेयमान् है जो प्रशस्त निर्जरा वाला है? हां, गौतम ! जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है। जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है। महावेदना वाले और अल्पवेदना वाले में वह श्रेष्ठ है, जो प्रशस्त निर्जरा वाला है। २. भन्ते! छठी और सातवीं पृथ्वियों के नैरयिक क्या महावेदना वाले हैं?
हां, महावेदना वाले हैं। ३. भन्ते! क्या वे श्रमण-निर्ग्रन्थों से महानिर्जरा वाले हैं?
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। ४. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है? जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है? महा-वेदना वाले और अल्पवेदना वाले में वह श्रेष्ठ है जो प्रशस्त निर्जरा वाला है? गौतम! जैसे कोई दो वस्त्र हैं-एक वस्त्र कर्दम-राग से रंगा हुआ और एक वस्त्र खंजन-राग से रंगा हुआ है। गौतम! इन दोनों वस्त्रों में कौन-सा वस्त्र कठिनता से धुलता है? किस वस्त्र का धब्बा कठिनता से उतरता है और किस वस्त्र का परिकर्म सम्यक् प्रकार से नहीं होता? कौन-सा वस्त्र सरलता से धुलता है? किस वस्त्र का धब्बा सरलता से उतरता है? और किस वस्त्र का परिकर्म सम्यक् प्रकार से होता है? वह जो वस्त्र कर्दम-राग से रंगा हुआ है अथवा वह जो वस्त्र खंजनराग से रंगा हुआ है? भगवन् ! जो वस्त्र कर्दम-राग से रंगा हुआ है, वह कठिनता से धुलता है, उसके धब्बे कठिनता से उतरते हैं और उसका परिकर्म सम्यक् प्रकार से नहीं होता। गौतम! इसी प्रकार
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