Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ६ : उ. १ : सू. ४-६
नैरयिक जीवों के पाप-कर्म गाढ़ रूप में किए हुए होते हैं, चिकने किए हुए होते हैं, संसृष्ट किए हुए होते हैं और अलंघ्य होते हैं। वे प्रगाढ़ वेदना का वेदन करते हुए भी महानिर्जरा वाले नहीं होते, महापर्यवसान वाले नहीं होते ।
जैसे कोई पुरुष अहरन (निहाई) को तेज शब्द, तेज घोष और निरन्तर तेज आघात के साथ हथौड़े से पीटता हुआ उस अहरन के स्थूल पुद्गलों का परिशाटन करने में समर्थ नहीं होता, गौतम ! इसी प्रकार नैरयिक- जीवों के पाप-कर्म गाढ़रूप में किए हुए होते हैं, चिकने किए हुए होते हैं, संसृष्ट किए हुए होते हैं और अलंघ्य होते हैं। वे प्रगाढ़ वेदना का वेदन करते हुए भी महानिर्जरा वाले नहीं होते, महापर्यवसान वाले नहीं होते ।
भगवन्! जो वस्त्र खंजन-राग से रंगा हुआ है, वह सरलता से धुलता है। उसके धब्बे सरलता से उतरते हैं, उसका परिकर्म सम्यक् प्रकार से होता है। गौतम ! इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के शिथिल रूप में किए हुए, निःसत्त्व किए हुए और विपरिणमन को प्राप्त किए हुए स्थूल कर्मपुद्गल शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं। वे जिस तिस मात्रा में वे वेदना का वेदन करते हुए महानिर्जरा वाले और महापर्यवसान वाले होते हैं।
गौतम ! जैसे कोई पुरुष सूखे घास के पूलों को अग्नि में डालता है। वह अग्नि में डाला हुआ सुखा घास का पूला शीघ्र ही भस्म हो जाता है ?
हां, भस्म हो जाता है ।
गौतम! इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के शिथिल रूप में किए हुए, निःसत्त्व किए हुए और विपरिणमन को प्राप्त किए हुए स्थूल कर्म - पुद्गल शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं । वे जिसतिस मात्रा में भी वेदना का वेदन करते हुए महानिर्जरा वाले और महापर्यवसान वाले होते हैं । गौतम! जैसे कोई पुरुष तपे हुए लोहे के तवे पर पानी की एक बूंद गिराता है। वह हुए लोहे के तवे पर गिराई हुई पानी की एक बूंद शीघ्र ही विध्वस्त हो जाती है ?
हां, विध्वस्त हो जाती है।
गौतम ! इस प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के शिथिल रूप में किए हुए, निःसत्त्व किए हुए और विपरिणमन को प्राप्त किए हुए स्थूल कर्म - पुद्गल शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं। वे जिसतिस मात्रा में भी वेदना का वेदन करते हुए महानिर्जरा वाले और महापर्यवसान वाले होते हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है, जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है। महावेदना वाले और अल्पवेदना वाले में वह श्रेष्ठ है जो प्रशस्त निर्जरा वाला है।
करण-पद
५. भन्ते ! करण के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! करण के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे - मन- करण, वचन करण, काय-करण और कर्म
-करण ।
६. भन्ते ! नैरयिक जीवों के करण कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ?
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