Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ५ : उ. ७ : सू. १६८-१७४
भगवती सूत्र वह तीसरे, छठ और नौवें विकल्प का स्पर्श करता है। त्रिप्रदेशिक स्कन्ध द्विप्रदेशिक स्कन्ध का स्पर्श करता हुआ पहले, तीसरे, चौथे, छठे, सातवें
और नौवें विकल्प का स्पर्श करता है। त्रिप्रदेशिक स्कन्ध त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का स्पर्श करता हुआ सब स्थानों का स्पर्श करता है। जिस प्रकार त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का त्रिप्रदेशिक स्कन्ध से स्पर्श कराया गया है, उस प्रकार त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का चतुःप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर यावत् अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध के साथ संयोग कराया जाए। जिस प्रकार त्रिप्रदेशिक स्कन्ध की वक्तव्यता है। वही वक्तव्यता चतुःप्रदेशिक से यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध की है। परमाणु-स्कन्धों की संस्थिति का पद १६९. भन्ते! परमाणु-पुद्गल काल की दृष्टि से (परमाणु-पुद्गल के रूप में) कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः, असंख्येय काल। इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध तक वही कालावधि है। १७०. भन्ते! आकाश के एक प्रदेश में अवगाढ़ सप्रकम्प पुद्गल उस अधिकृत स्थान में अथवा किसी दूसरे स्थान में काल की दृष्टि से कितने समय तक रहता है?
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आवलिका का असंख्यातवां भाग। इसी प्रकार यावत् असंख्यप्रदेशावगाढ़ सप्रकम्प पुद्गल की यही कालावधि है। १७१. भन्ते! आकाश के एक प्रदेश में अवगाढ़ सप्रकम्प पुद्गल काल की दृष्टि से कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः असंख्येय काल। इसी प्रकार यावत् असंख्यप्रदेशावगाढ़ अप्रकम्प पुद्गल की यही कालावधि है। १७२. भन्ते! एक-गुण-कृष्ण-वर्ण वाला पुद्गल काल की दृष्टि से (एक-गुण-कृष्ण-वर्ण के रूप में) कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः असंख्येय काल। इसी प्रकार यावत् अनन्त-गुण-कृष्ण-वर्ण वाले पुद्गल की यही कालावधि है। इसी प्रकार वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श यावत् अनन्त-गुण-रूक्ष पुद्गल की कालावधि वक्तव्य है। इसी प्रकार सूक्ष्म परिणति में परिणत पुद्गल तथा बादर परिणति में परिणत पुद्गल की कालावधि वक्तव्य है। १७३. भन्ते! शब्द-परिणति में परिणत पुद्गल काल की दृष्टि से शब्द-परिणति के रूप में कितने समय तक रहता है?
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आवलिका के असंख्यातवें भाग तक रहता है। १७४. भन्ते! अशब्द-परिणति में परिणत पुद्गल काल की दृष्टि से अशब्द-परिणति के रूप में कितने समय तक रहता है?
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