Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ४ : उ. ५-१० : सू. ६-९
भगवती सूत्र
पांचवां, छट्ठा, सातवां और आठवां उद्देशक
६. राजधानी के भी चार उद्देशक ज्ञातव्य हैं यावत् महाराज वरुण ऐसी महान् ऋद्धि वाला I नवां उद्देशक
७. भंते! नैरयिक नैरयिकों में उपपन्न होता है अथवा अनैरयिक नैरयिकों में उपपन्न होता है ? यहां पण्णवणा के लेश्या - पद का तीसरा उद्देशक ज्ञानके प्रकरण तक वक्तव्य T
दसवां उद्देश
८. भंते! क्या कृष्ण-लेश्या नील-लेश्या के योग्य पुद्गलों को प्राप्त कर उसके रूप, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श में बार-बार परिणत होती है ?
हां, गौतम ! कृष्ण - लेश्या के योग्य पुद्गलों को प्राप्त कर उसके रूप, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श में बार-बार परिणत होती है। इस प्रकार पण्णवणा के लेश्या - पद का चौथा उद्देशक ज्ञातव्य है यावत्
संग्रहणी गाथा
परिणाम, वर्ण, रस, गन्ध, शुद्ध, अप्रशस्त, संक्लिष्ट, उष्ण, गति, परिणाम, प्रदेश, अवगाहना, वर्गणा, स्थान और अल्पबहुत्व ।
९. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
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