Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ३ : उ. ८-१० : सू. २७५-२८१
भगवती सूत्र जैसेसंग्रहणी गाथा
पिशाचों के काल, महाकाल। भूतों के सूरूप, प्रतिरूप। यक्षों के पूर्णभद्र, माणिभद्र। राक्षसों के भीम, महाभीम। किन्नरों के किन्नर, किंपुरुष। किंपुरुषों के सत्पुरुष, महापुरुष। महोरगों के अतिकाय, महाकाय। गन्धों के गीतरति और गीतयशा।
ये वानमन्तर-देवों का आधिपत्य करने वाले देव हैं। २७६. दो देव ज्योतिष्क-देवों का आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विहरण
करते हैं, जैसे–चन्द्रमा और सूर्य । २७७. भन्ते! कितने देव सौधर्म- और ईशान-कल्प में आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विहरण करते हैं? गौतम! दस देव उनमें आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विहरण करते हैं, जैसे-देवेन्द्र देवराज शक्र, सोम, यम, वरुण, और वैश्रवण। देवेन्द्र देवराज ईशान, सोम, यम, वैश्रवण और वरुण। इस वक्तव्यता के अनुसार सभी कल्पों में ये लोकपाल वक्तव्य हैं जहां जो इन्द्र है वहां वह वक्तव्य है। २७८. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
नवां उद्देशक २७९. राजगृह नगर में भगवान् गौतम भगवान् महावीर की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले–भन्ते! इन्द्रियों के विषय कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! इन्द्रियों के विषय पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-श्रोत्रेन्द्रिय-विषय, चक्षुरिन्द्रियविषय, घ्राणेन्द्रिय-विष्य, रसनेन्द्रिय-विषय, और स्पर्शनेन्द्रिय-विषय। जीवाजीवाभिगम में ज्योतिष्क-सम्बन्धी उद्देशक यहां अविकल रूप से ज्ञातव्य है।
दसवां उद्देशक २८०. राजगृह नगर में भगवान् गौतम भगवान् महावीर से इस प्रकार बोले-भन्ते! असुरेन्द्र
असुरराज चमर के कितनी परिषदें प्रज्ञप्त हैं? गौतम! तीन परिषदें प्रज्ञप्त हैं, जैसे-शमिता, चण्डा और जाता। इस प्रकार क्रमशः अच्युतकल्प तक ज्ञातव्य है। २८१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
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