Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ५ : उ. ४ : सू. ६४-७०
भगवती सूत्र गौतम! वह क्रम से सुनता है, अक्रम से नहीं सुनता। भन्ते! वह जिन शब्दों को क्रम से सुनता है, क्या उन्हें तीन दिशाओं से सुनता है यावत् छह दिशाओं से सुनता है?
गौतम! वह नियमतः छह दिशाओं से सुनता है। ६५. भन्ते! छमस्थ मनुष्य आरगत (इन्द्रिय-विषय की सीमा में आने वाले) शब्दों को सुनता है या पारगत (इन्द्रिय-विषय की सीमा से परवर्ती) शब्दों को सुनता है?
गौतम! वह आरगत शब्दों को सुनता है, पारगत शब्दों को नहीं सुनता। ६६. भन्ते! जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य आरगत शब्दों को सुनता है, पारगत शब्दों को नहीं सुनता, क्या उसी प्रकार केवली आरगत शब्दों को सुनता है अथवा पारगत शब्दों को सुनता
गौतम! केवली आरगत अथवा पारगत, अतिदूर, अतिनिकट तथा मध्यवर्ती (न आसन्न न दूर) स्थित शब्द को जानता-देखता है। ६७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है केवली आरगत अथवा पारगत, अतिदूर,
अतिनिकट तथा मध्यवर्ती (न आसन्न न दूर) स्थित शब्द को जानता-देखता है? गौतम! केवली पूर्व में परिमित को भी जानता है, अपरिमित को भी जानता है। इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व और अधः दिशाओं में परिमित को भी जानता है और अपरिमित को भी जानता है। केवली सबको जानता है, केवली सबको देखता है। केवली सब ओर से जानता है, केवली सब ओर से देखता है। केवली सब काल में जानता है, केवली सब काल में देखता है। केवली सब भावों को जानता है, केवली सब भावों को देखता है। केवली का ज्ञान अनन्त है, केवली का दर्शन अनन्त है। केवली का ज्ञान निरावरण है, केवली का दर्शन निरावरण है । गौतम! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है केवली आरगत अथवा पारगत, अतिदूर, अति-निकट तथा मध्यवर्ती (न आसन्न न
दूर) स्थित शब्द को जानता-देखता है। छद्मस्थ और केवली का हास्य-पद ६८. भन्ते! छद्मस्थ मनुष्य हंसता है? उत्सुक होता है?
हां, वह हंसता है, उत्सुक होता है। ६९. भन्ते! जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य हंसता है और उत्सुक होता है, उस प्रकार केवली भी हंसता है? उत्सुक होता है?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ७०. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य हंसता है, उस प्रकार उत्सुक केवली न हंसता है, न उत्सुक होता है?
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