Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ५ : उ. ६ : सू. १३१-१३४ भन्ते! उस धन से ग्राहक के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्या-दर्शन-क्रिया होती है? उस धन से गृहपति के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्या-दर्शन-क्रिया होती
गौतम! उस धन से ग्राहक के प्रथम चार क्रियाएं होती हैं। मिथ्या-दर्शन-क्रिया की भजना है-कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती।
गृहपति के वे सब क्रियाएं पतली हो जाती हैं। १३२. भन्ते! एक गृहपति भाण्ड बेच रहा है, ग्राहक भाण्ड को वचनबद्ध हो कर स्वीकार कर लेता है और गृहपति धन ग्रहण कर लेता है। भन्ते! उस धन से गृहपति के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्या-दर्शन-क्रिया होती है?
उस धन से ग्राहक के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्या-दर्शन-क्रिया होती है? गौतम! उस धन से गृहपति के आरम्भिकी क्रिया होती है यावत् अप्रत्या-ख्यान-क्रिया होती है। मिथ्या-दर्शन-क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती। ग्राहक के वे सब क्रियाएं पतली हो जाती हैं। अग्निकाय में महाकर्म आदि-पद १३३. भन्ते! तत्काल प्रज्वलित होता हुआ अग्निकाय महा-कर्म वाला, महा-क्रिया वाला, महा-आश्रव वाला और महा-वेदना वाला होता है और वह क्षण-क्षण क्षीण होता हुआ अन्तिम समय में कोयला बन जाता है, मुर्मर बन जाता है, क्षार बन जाता है, क्या उसके पश्चात् वह अल्प-कर्म वाला, अल्प-क्रिया वाला, अल्प-आश्रव वाला और अल्प-वेदना वाला होता है? हां, गौतम! तत्काल प्रज्वलित होता हुआ अग्निकाय महा-कर्म वाला यावत् क्षीण होता हुआ
अल्प-वेदना वाला होता है। धनुःप्रक्षेप में क्रिया-पद १३४. भन्ते! एक पुरुष धनुष हाथ में लेता है, लेकर बाण को धनुष पर चढ़ाता है, चढ़ा कर स्थान (वैशाख नाम युद्ध की मुद्रा) में खड़ा होता है, खड़ा हो कर बाण को कान की लम्बाई तक खींचता है और ऊपर आकाश की ओर फेंकता है। ऊपर आकाश की ओर फेंका हुआ वह बाण, वहां जो प्राण, भूत, जीव और सत्त्व हैं, उनका अभिघात करता है, उनका वर्तुल बनाता है, उन्हें चोट पहुंचाता है, उनके अवयवों को संहत करता है, उन्हें संचालित करता है, परितप्त करता है, क्लान्त करता है, स्थानान्तरित करता है और उनका प्राण-वियोजन करता है। भन्ते! उस बाण को फेंकने वाला पुरुष कितनी क्रिया से स्पृष्ट होता है ?
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