Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ५ : उ. १ : सू. १६-२४
भगवती सूत्र ऋतु के साथ भी वक्तव्य है। तीन ऋतओं में इसी प्रकार वक्तव्य है। इसके तीस आलापक होते हैं। जम्बूद्वीप में अयनादि की वक्तव्यता का पद १७. भन्ते! जिस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अयन (दक्षिणायन) प्रतिपन्न होता है उस समय उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अयन प्रतिपन्न होता है, जिस प्रकार समय के साथ अभिलाप है, उसी प्रकार अयन के साथ भी वक्तव्य है। यावत् अनन्तर पश्चाद्वर्ती समय में प्रथम अयन प्रतिपन्न होता है। १८. जिस प्रकार अयन के साथ अभिलाप हैं उसी प्रकार संवत्सर के साथ भी अभिलाप वक्तव्य है। युग, सौ वर्ष, हजार वर्ष, लाख वर्ष, पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित के साथ भी अभिलाप वक्तव्य है। इसी प्रकार पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पालंग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनिकुरांग, अर्थनिकुर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका तथा पल्योपम, सागरोपम के साथ भी अभिलाप वक्तव्य है। १९. भन्ते! जिस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है, उस समय उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है। जिस समय उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है, उस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम भाग में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नहीं होती है, आयुष्यमन् श्रमण! वहां काल अवस्थित है?
हां, गौतम! पूर्ण पाठ प्रश्नवत् वक्तव्य है यावत् आयुष्मान् श्रमण! २०. जिस प्रकार अवसर्पिणी का आलापक कहा गया, उसी प्रकार उत्सर्पिणी का आलापक
भी वक्तव्य है। लवणसमुद्रादि में सूर्यादि की वक्तव्यता का पद २१. भन्ते! लवण समुद्र में सूर्य उत्तर और पूर्व के मध्य उदित होकर पश्चिम और दक्षिण के मध्य आते हैं। जम्बूद्वीप में सूर्य की जो वक्तव्यता कही गई है वह सारी अविकल रूप से लवण समुद्र के सन्दर्भ में भी वक्तव्य है। विशेषतः यह अभिलाप ज्ञातव्य है। २२. भन्ते! जिस समय लवण समुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है। वही वक्तव्यता यावत् उस
समय लवण समुद्र के पूर्व-पश्चिम भाग में रात्रि होती है। २३. इस अभिलाप के अनुसार ज्ञातव्य है यावत् भन्ते! जिस समय लवण समुद्र के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है, उस समय उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है; जिस समय उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है उस समय लवण समुद्र के पूर्व-पश्चिम भाग में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नहीं होती, आयुष्मन् श्रमण! क्या वहां काल अवस्थित है?
हां, गौतम! यावत् आयुष्मन् श्रमण! २४. भन्ते! धातकीषण्ड द्वीप में सूर्य उत्तर ओर पूर्व के मध्य उदित होकर पश्चिम और दक्षिण
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