Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ५ : उ. ३ : सू. ५७,५८
- एक जीव एक समय में दा आयुष्यों का प्रतिसंवेदन करता है, जैसे- इस भव के आयुष्य का और पर-भव के आयुष्य का ।
जिस समय जीव इस भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, उसी समय वह पर-भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है।
जिस समय वह पर-भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, उसी समय वह इस भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है।
इस भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करने से पर-भव के आयुष्य का प्रति संवेदन करता है। पर-भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करने से वह इस भव के आयुष्य का प्रति संवेदन करता है ।
इस प्रकार एक जीव एक समय में दो आयुष्यों का प्रतिसंवेदन करता है, जैसे- इस भव के आयुष्य का और पर-भव के आयुष्य का ।
५८. भन्ते ! यह किस प्रकार कैसे है ?
गौतम ! अन्ययूथिक जो कहते हैं यावत् एक जीव एक समय में दो आयुष्यों का प्रतिसंवेदन करता है, जैसे- इस भव के आयुष्य का और पर-भव के आयुष्य का। जो ऐसा कहते हैं, वह मिथ्या है। गौतम ! मैं इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता हूं-जैसे कोई जाल - ग्रन्थिका है । उस जाल में क्रमपूर्वक गांठे दी हुई हैं, एक के बाद एक किसी अन्तर के बिना परम्पर ग्रन्थियों के साथ गूंथी हुई हैं। सब ग्रन्थियां परस्पर एक-दूसरी से गूंथी हुई हैं । वैसा जाल परस्पर विस्तीर्ण, परस्पर भारी, परस्पर विस्तीर्ण और भारी होने के कारण परस्पर समुदय-रचना के रूप में अवस्थित है। इसी प्रकार एक-एक जीव के अनेक हजार जन्मों के अनेक हजार आयुष्य क्रम से गूंथे हुए यावत् समुदय-रचना के रूप में अवस्थित हैं ।
एक जीव एक समय में एक आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, जैसे- इस भव के आयुष्य का अथवा पर-भव के आयुष्य का।
जिस समय वह इस भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, उस समय पर भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन नहीं करता ।
जिस समय वह पर-भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, उस समय इस भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन नहीं करता ।
इस भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करने से वह पर-भव के आयुष्य का प्रति संवेदन नहीं
करता ।
पर-भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करने से वह इस भव के आयुष्य का प्रति संवेदन नहीं
करता ।
इस प्रकार एक जीव एक समय में एक आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है - इस भव के आयुष्य का अथवा पर-भव के आयुष्य का।
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