Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ३ : उ. ६ : सू. २२४-२३१
भगवती सूत्र यथार्थभाव को नहीं जानता-देखता, अन्यथाभाव को जानता-देखता है। २२५. भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार जो मायी, मिथ्या-दृष्टि है, वीर्य-लब्धि, वैक्रिय-लब्धि
और विभंग-ज्ञान-लब्धि से सम्पन्न है, वह राजगृह नगर में वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग करता है, प्रयोग कर वाराणसी नगरी में विद्यमान रूपों को जानता-देखता है?
हां, जानता-देखता है। २२६. भन्ते! क्या वह यथार्थभाव को जानता-देखता है? अन्यथाभाव (विपरीत-भाव) को जानता-देखता है?
गौतम! वह यथार्थभाव को नहीं जानता-देखता है, अन्यथाभाव को जानता-देखता है। २२७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह यथार्थभाव को नहीं जानता-देखता है,
अन्यथाभाव को जानता-देखता? गौतम! उसके इस प्रकार दृष्टिकोण होता है—मैंने वाराणसी नगरी में वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग किया है, प्रयोग कर मैं राजगृह नगर में विद्यमान रूपों को जानतादेखता हूं। यह उसके दर्शन का विपर्यास है। गौतम! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है- क्या वह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव को जानता-देखता है। २२८. भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार जो मायी, मिथ्या-दृष्टि है, वीर्य-लब्धि, वैक्रिय-लब्धि
और विभंग-ज्ञान-लब्धि से सम्पन्न है, वह वाराणसी नगरी और राजगृह नगर के अन्तराल में एक महान् जनपदाग्र का निर्माण करने के लिए वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग करता है, प्रयोग कर वाराणसी नगरी, राजगृह नगर और उनके अन्तराल में एक महान् जनपदान को जानतादेखता है?
हां, जानता-देखता है। २२९. भन्ते! क्या वह यथार्थभाव को जानता-देखता है? अन्यथाभाव (विपरीत-भाव) को जानता-देखता है? गौतम! वह यथार्थभाव को नहीं जानता-देखता है, अन्यथाभाव को जानता-देखता है। २३०. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-वह यथार्थभाव को नहीं जानता-देखता, अन्यथाभाव को जानता-देखता है? । गौतम ! उसके इस प्रकार का दृष्टिकोण होता है यह वाराणसी नगरी है, यह राजगृह नगर है। इन दोनों के अन्तराल में महान् जनपदाग्र है। यह मेरी वीर्य-लब्धि, वैक्रिय-लब्धि और विभंग-ज्ञान-लब्धि नहीं है। यह ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम मुझे लब्ध, प्राप्त और अभिसमन्वागत (विपाकाभिमुख) नहीं है। यह उसके दर्शन का विपर्यास है। गौतम! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है-वह यथार्थभाव को नहीं जानता-देखता,
अन्यथाभाव को जानता-देखता है। २३१. भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार जो अमायी, सम्यग्-दृष्टि है, वीर्य-लब्धि, वैक्रियलब्धि और अवधि-ज्ञान-लब्धि से सम्पन्न है, वह राजगृह नगर में वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग
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