Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. ७ : सू. २४९-२५३
२४९. भन्ते! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोम का सन्ध्याप्रभ नामक महाविमान कहां प्रज्ञप्त हैं? गौतम! जम्बूद्वीप द्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण भाग में इसी रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रायः समतल
और रमणीय भूभाग से ऊपर चांद, सूरज, ग्रह-गण, नक्षत्र और ताराओं से बहुत योजन दूर यावत् पांच अवतंसक प्रज्ञप्त हैं जैसे-अशोकावतंसक, सप्तपर्णावतंसक, चम्पकावतंसक,
चूतावतंसक और मध्य में सौधर्मावतंसक। सोम-पद २५०. उस सौधर्मावतंसक महाविमान के पूर्व में सौधर्मकल्प में असंख्य योजन जाने पर देवेद्र
देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोम का सन्ध्यप्रभ नामक महाविमान प्रज्ञप्त है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई साढ़ा बारह लाख योजन है और परिधि उनचालीस लाख, बावन हजार आठ सो अड़तालीस योजन से कुछ अधिक है। जो सूर्याभ विमान की वक्तव्यता है, वह समग्रतया
अभिषेक तक यहां वक्तव्य है। केवल सूर्याभ के स्थान पर सोमदेव वक्तव्य है। २५१. सन्ध्यप्रभ महाविमान के नीचे ठीक सीधे तिरछे लोक में असंख्येय हजार योजनका
अवगाहन करने पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोम की सोमा नाम की राजधानी प्रज्ञप्त है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई, जम्बूद्वीप-प्रमाण एक लाख योजन है। इसके प्रासाद आदि का प्रमाण सौधर्मवर्ती प्रासाद आदि से आधा है यावत् पीठिका लम्बाई-चौड़ाई में सोलह हजार (१६०००) योजन और परिधि में पचास हजार पांच सौ सितानवे (५०५९७) योजन से कुछ कम है। उसके प्रासादों की चार पंक्तियां हैं। शेष (सुधर्मा सभा) नहीं है। २५२. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोम की आज्ञा, उपपात, वचन और निर्देश में रहने वाले देव ये हैंसोमकायिक, सोमदेवकायिक, विद्युत्-कुमार, विद्युत्कुमारियां, अग्निकुमार, अग्निकुमारियां, वातकुमार, वात-कुमारियां, चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा-रूप। इस प्रकार के जितने अन्य देव हैं, वे सब देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोम के प्रति भक्ति रखते हैं, उसके पक्ष में रहते हैं, उसके वशवर्ती रहते हैं तथा उसकी आज्ञा, उपपात, वचन और निर्देश में अवस्थित हैं। २५३. जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण भाग में जो ये स्थितियां उत्पन्न होती हैं, जैसे-ग्रहदण्ड, ग्रहमुशल, ग्रहगर्जित, ग्रहयुद्ध, ग्रहशृंगाटक, ग्रहों का विरोधी दिशा में गमन, अभ्र, अभ्रवृक्ष, सन्ध्या, गन्धर्वनगर, उल्कापात, दिग्दाह, गर्जित्, विद्युत्, पांशुवृष्टि, यूपक, यक्षोद्दीप्त, धूमिका, महिका, रजोद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्र-धनुष, उदक-मत्स्य, कपि-हसित, अमोघा, पूर्वदिशा की वायु, पश्चिम दिशा की वायु, दक्षिण-दिशा की वायु, उत्तर-दिशा की वायु, ऊर्ध्व-दिशा की वायु, अधो-दिशा की वायु, तिरछी दिशा की वायु, विदिशा की वायु, अनवस्थित वायु, वात-उत्कलिका, वात-मण्डलिका, उत्कलिका-वात, मण्डलिका-वात, गुजा-वात, झंझा-वात, संवर्तक-वात, ग्राम-दाह यावत् सन्निवेश-दाह, प्राण-क्षय, जन-क्षय धन-क्षय, कुल-क्षय तथा और भी इस प्रकार की अनिष्ट आपदाएं, वे सब देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल
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