Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. ६ : सू. २३१-२३९ करता है, प्रयोग कर वाराणसी नगरी में विद्यमान रूपों को जानता-देखता है?
हां, जानता देखता है। २३२. भन्ते! क्या वह यथार्थभाव को जानता-देखता है? अन्यथाभाव (विपरीत-भाव) को जानता-देखता है? गौतम! वह यथार्थभाव को नहीं जानता-देखता है, अन्यथाभाव नहीं जानता-देखता। २३३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह यथार्थभाव को जानता-देखता है,
अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता? गौतम! उसके इस प्रकार का दृष्टिकोण होता है-मैंने राजगृह नगर में वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग किया है, प्रयोग कर मैं वाराणसी नगरी में विद्यमान रूपों को जानता-देखता हूं। यह उसके दर्शन का अविपर्यास है। गौतम! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है यह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता। २३४. भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार जो अमायी, सम्यग्-दृष्टि है, वीर्य-लब्धि, वैक्रिय-लब्धि और अवधि-ज्ञान-लब्धि से सम्पन्न है, वह वाराणसी नगरी में वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग करता है, प्रयोग कर राजगृह नगर में विद्यमान रूपों को जानता-देखता है ?
हां, जानता देखता है। २३५. भन्ते! क्या वह यथार्थभाव को जानता-देखता है अथवा अन्यथाभाव (विपरीत-भाव) को जानता-देखता है? गौतम! वह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता। २३६. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता? गौतम! उसके इस प्रकार का दृष्टिकोण होता है-मैंने वाराणसी नगरी में वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग किया है, प्रयोग कर राजगृह नगर में विद्यमान रूपों को जानता-देखता हूं। यह उसके दर्शन का अविपर्यास है। गौतम! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है यह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता। २३७. भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार जो अमायी, सम्यग्-दृष्टि है, वीर्य-लब्धि, वैक्रिय-लब्धि और अवधि-ज्ञान-लब्धि से सम्पन्न है, वह राजगृह नगर, वाराणसी नगरी और उसके अन्तराल में एक महान् जनपदाग्र का निर्माण करने के लिए वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग करता है, प्रयोग कर राजगृह नगर वाराणसी नगरी और उनके अन्तराल में एक महान् जनपदाग्र को जानता-देखता है?
हां, जानता देखता है। २३८. भन्ते! क्या वह यथार्थभाव को जानता-देखता है? अथवा अन्यथाभाव (विपरीत-भाव) को जानता-देखता है? गौतम! वह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता।
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