Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
श. ३ : उ. २ : सू. ९३-१०१
भगवती सूत्र
असुरकुमार-देव सौधर्म-कल्प में गए हैं और जाएंगे। ९४. भन्ते! असुरकुमार-देव कितने समय से ऊर्ध्व-लोक में जाते हैं यावत् सौधर्म-कल्प तक गए हैं और जाएंगे?
गौतम! अनन्त अवसर्पिणी और अनन्त उत्सर्पिणी के व्यतीत होने पर लोक में आश्चर्यभूत यह भाव उत्पन्न होता है कि असुरकुमार देव ऊर्ध्व-लोक में यावत् सौधर्म कल्प तक जाते हैं। ९५. भन्ते! असुरकुमार-देव किसकी निश्रा (आश्रय) से ऊर्ध्व-लोक में, यावत् सौधर्म कल्प तक जाते हैं? गौतम! जैसे कोई शबर, बर्बर, टंकण, चुचुक, पल्हव या पुलिन्द एक महान् अरण्य, गर्त, दुर्ग, दरी, विषम अथवा पर्वत की निश्रा से एक विशाल अश्वसेना, हस्तिसेना, पदातिसेना अथवा धनुष्यबल को आन्दोलित कर देते हैं, इसी प्रकार असुरकुमार-देव भी अर्हत. अर्हतचैत्य अथवा भावितात्मा अणगार की निश्रा से ऊर्ध्व-लोक में यावत् सौधर्म-कल्प तक जाते हैं। उनकी निश्रा के बिना वे ऊर्ध्व-लोक में नहीं जा सकते। ९६. भन्ते! क्या सभी असुरकुमार देव ऊर्ध्व-लोक में यावत् सौधर्म-कल्प तक जाते हैं?
गौतम! यह बात संगत नहीं है। महर्द्धिक असुरकुमार देव ही ऊर्ध्व-लोक में यावत् सौधर्म-कल्प तक जाते हैं। चमर का ऊर्ध्व-उत्पाद-पद ९७. भन्ते यह असुरेन्द्र असुरराज चमर भी ऊर्ध्व-लोक में यावत् सौधर्म-कल्प तक गया हुआ
हां, गौतम! यह असुरेन्द्र असुरराज चमर भी ऊर्ध्व-लोक में यावत् सौधर्म- कल्प तक गया हुआ है। ९८. अहो भंते! असुरेन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला है, महान् द्युति वाला है यावत् महासामर्थ्य वाला है। भन्ते! चमर की यह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवानुभाग कहां गया? कहां प्रविष्ट हो गया है?
कूटागार-शाला का दृष्टान्त वक्तव्य है। चमर का पूर्वभव में पूरण गृहपति का पद ९९. भन्ते! असुरेन्द्र असुरराज चमर ने दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देव-द्युति और दिव्य देवानुभाग किस हेतु से उपलब्ध किया? किस हेतु से प्राप्त किया है? और किस हेतु से अभिसमन्वागत (विपाकाभिमुख) किया? १००. गौतम! उस काल और उस समय उसी जम्बूद्वीप द्वीप के भारतवर्ष में विन्ध्यपर्वत की
तलहटी में बेभेल नामक सन्निवेश था। सन्निवेश का वर्णन । १०१. उस बेभेल सन्निवेश में पूरण नामक गृहपति रहता था। वह समृद्ध, तजस्वी यावत् अनेक लोगों द्वारा अपरिभूत था।
११६